Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 525
________________ १११ प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका अथ मोक्षतत्त्वसाधनसत्त्वं सर्वमनोरथस्यानत्वेनामिनदन्यति--- सुद्धस्स य सामण्णं भणियं सुद्धस्स दंसणं गाणं । सद्धस्स य शिव्वाणं सो चिय सिद्धो मो तस्स ॥२७४॥ श्रामण्य शुद्धके हो, दर्शन ज्ञान भी शुद्ध के होते । निर्वाण शुद्धका है, सो मैं उस सिद्धको प्रणम् ॥२७४॥ शुद्धस्य च श्राग्यं भणितं शुद्धस्य दर्शनं ज्ञानम् । शुद्धस्य च निर्वाण स च एव सिद्धो नमस्तस्मै ।।२७४।। यत्तावत्सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रयोगपद्यप्रवृत्त काग्यलक्षणं साक्षान्मोक्षमार्गभूतं श्रामण्यं तच्च शुद्धस्यैव । यसच समस्तभून भवद्भानि व्यतिरेककरम्बितानन्तवस्त्वन्वयात्मकविश्व सामान्यविशेषप्रत्यक्षप्रतिभासात्मक दर्शनं ज्ञानं च तत् शुद्धस्यैव । यच्च निप्रतिविम्भितसहजज्ञाना. नन्दमुद्रितदिव्यस्वभावं निर्वाणं तत् शुद्धस्यैव ! पश्च टोत्कीर्णपरमानन्दावस्थासु स्थितात्म नामसंज्ञ----सुद्ध य सामण्ण भणिय सुद्ध दंसण णाण सुन्द्ध य णिवाण त च इय सिद्ध णमो त । धातुसंज्ञ-भण कथने । प्रातिपदिक-शुद्ध च श्रामण्य भणित शुद्ध दर्शन ज्ञान शुद्ध व निर्वाण स च एव सिद्ध नमः तत् । मूलधातु.... 'भण शब्दार्थः । उभयपदविवरण---शुद्धस्स शुद्धस्य--षष्ठी एव० य च इय एव णमो नम:-अव्यय सामग्ण सामान्य दसणं दर्शनं गाणं ज्ञानं णिव्वाणं निर्वाण सो सः सिद्धो सिद्धः वही सिद्ध होता है। टोकार्थ-..-वास्तनमें सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्रके योगपद्य में प्रवर्तमान एकाग्रता जिसका लक्षण है ऐसा साक्षात् जो मोक्षमार्गभूत जो श्रामण्य है वह 'शुद्ध' के ही होता है । और जो समस्त भूत-वर्तमान-भावो व्यतिरेकोंके साथ मिलित, अनन्त वस्तुप्रोका अन्वयात्मक विश्वके सामान्य और विशेष के प्रत्यक्ष प्रतिभासस्वरूप दर्शन और ज्ञान है वह 'शुद्ध' के हो होता है । और जो निविघ्न खिले हुये सहज ज्ञानानन्दकी मुद्रावाला दिव्य जिसका स्वभाव है ऐसा निर्वाण है वह 'शुद्ध' के ही होता है । और जो टंकोत्कीर्ण परमानन्दरूप अवस्थानों में स्थित प्रात्मस्वभावकी उपलब्धि से गंभीर भगवान सिद्ध है वह 'शुद्ध' हो होता है ! वधन विस्तारसे बस हो. ? सर्व मनोरथोंके स्थानभूत, मोक्षतत्त्वके साधनतत्त्वरूप, 'शुद्ध' को, जिसमेंसे परस्पर अंग-अंगीरूपसे परिणमित भावक: भाव्यताके कारण स्व-परका विभाग अस्त हुआ है ऐसा भावनमस्कार होयो। प्रसंगविवरण-अनन्त र पूर्व गाथामें मोक्षतत्त्वके साधन तत्वकी महिमा कही गई यी। अब इस माथामें उसी तत्त्वका अभिनन्दन किया गया है । तथ्यप्रकाश-. १-मोक्षतत्व के साधनतत्त्वमय शुद्धोपयोगको भावनमस्कार होगी।

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