________________
४६२
सहजानन्दशास्त्रमालायां
तिषिद्धम || २६१ ॥
मूलधातु- दृशिर प्रेक्षणे, वृतु वर्तने । उभयपदविवरण दिट्ठा दृष्ट्वा-सम्बन्धार्थप्रक्रिया | पगंद प्रकृतं वत्युं वस्तु द्वितीया एक अटुाणपधा किरियाहि अभ्युत्थानप्रधान क्रियाभिः तृतीया बहु० । तदो ततः-पंचभ्यर्थे अव्यय । गुणादो गुणात्-पंचमी एक० । विसेसिदो विशेषितभ्यः प्रथमा एक० कृदंत क्रिया । ति इति-अव्यय । उवदेसो उपदेश: प्रथमा एकवचन । निरुक्ति- गुण्यते अनेन इति गुणः (गुण + अच्) गुण आमन्त्रणे चुरादि । समास - अभ्युत्थानं प्रधानं घासु ताः अभ्युत्थानप्रधानाः अभ्युत्थानप्रत्राना च ताः क्रियाः अभ्युत्थानप्रधानक्रिया ताभिः ॥ २६५ ॥
तात्पर्य --- निर्ग्रन्थ श्रमणको देखकर भ्रमण पहिले तो अभ्युत्थान आदि करके सन्मान करे, पश्चात् गुण देखकर उनके प्रति विशेषता वर्ते ।
टीका -- श्रमणो ग्रात्मविशुद्धिकी हेतुभूत प्रकृतवस्तु अर्थात् श्रमणके प्रति उनके योग्य क्रियारूप प्रवृत्तिसे गुणातिशयताका आरोपण करना अप्रतिषिद्ध है ।
प्रसङ्गविवरण - अनन्तरपूर्व गाथा में अविपरीत फलके कारणभूत अविपरीत कारण का व्याख्यान किया गया था। अब इस गाथा में सामान्यपनेसे अविपरीत फलके कारणभूत श्रविपरीत कारणको उपासनाकी प्रवृत्ति बताई गई है ।
तथ्यप्रकाश - - ( १ ) आत्मविशुद्धिके हेतुभूत आचार्य श्रमण आदिको देखकर विनय विनय करने वाले पात्र में गुणातिशय खड़े होना आदि क्रियावों द्वारा
रूप प्रवृत्ति करना चाहिये । (२) गुणो जनोंके विनयसे का धारण होता है । (३) गुणी जनों को देखकर उठकर विनय किया जाता है ।
सिद्धान्त -- ( १ ) विनयतप करने वाले को स्वयं में लाभ सुनिश्चित है । दृष्टि - १ - क्रियानय (१६३) ।
प्रयोग - गुणातिशयके धारणके लिये गुणीजनों के प्रति विनयरूप प्रवर्तन करना | २६१। अब इमो विषयका दूसरा सूत्र कहते हैं -- [ गुणाधिकानां हि ] गुणोंमें अधिक श्रमणों के प्रति [ अभ्युत्थानं ] अभ्युत्थान, [ प्रहरणं ] ग्रहण [ उपासनं] उपासन [पोषणं ] पोषण [ सत्कार : ] सरकार [अञ्जलिकररपं] अंजलि करना [च] और [ प्रणामः ] प्रणाम करना [ह] यहाँ [भरितम् ] कहा गया है ।
तात्पर्य - - श्रमण गुणाधिक श्रमणोंका अभ्युत्थानादिसे विशेष भक्ति करे ऐसा श्रागम में कहा गया है ।
टोकांर्थ--श्रमणोंको अपने अधिक गुणी श्रमणों के प्रति अभ्युत्थान, ग्रहण, पोषण, सत्कार, अंजलिकरण श्रीर प्रणाम करनेकी प्रवृत्तियों निषिद्ध नहीं हैं ।
प्रसङ्ग विवरण --- प्रनन्वरपूर्ण गाथा में श्रविपरीत फलके कारणभूत अविपरीत कारण