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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका
४६५ प्रथ कोहशः श्रमणाभासो भवतीत्याख्याति---
ण हवदि समणो त्ति मदो संजमत्तवसुत्तसंपजुत्तो वि । जदि सहहदि ण अत्थे श्रादपधाणे जिणक्खादे ॥२६४॥ संयम तप श्रुत संयुत, होकर भी बह श्रमण नहीं होता।
प्रात्मप्रधान वस्तुमें, जो नहिं श्रद्धान करता है ।।२६४॥ न भवति श्रमण इति मतः संयमतपःसूत्रसंप्रयुक्तोऽपि ! यदि श्रद्धले नानात्मप्रधानानु जिनाख्यातान् ।२६४।
___ यागमज्ञोऽपि संयतोऽपि तपस्थोऽपि जिनोदितमनन्तार्थनिर्भर विश्व स्वेनात्मा ज्ञेयत्वेन निष्पीतत्वादात्मप्रधानमश्रद्दधानः श्रमणोमासो भवति ।। ६४॥
नामसंज.... | सपण ति मद स जमतवसुत्तसंपजुत्त यि जदि माथे आदपधान जिणक्खाद । धातुसज- मन्न अवयोधने, सद् दह धारणे, क्खा प्रकथने । प्रातिपदिक.....न श्रमण इति मत संयमतपःसुत्रसंप्र, युक्त अपि यदि न अर्थं आत्मप्रधान जिनख्यात । मूलधातु-मनु अवबोधने, सद् धान धारण पोषणयो: ख्या प्रकथने । उभयपदविवरण-णन ति इति वि अपि जदि यदि ण न-अध्यय । हदि भवांत सहादा थद्दधाति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । समणो श्रमणः संजमतव सुत्तसंपजुत्तो संयमतपःसूत्रसंप्र. युक्त:-प्रथमा एकवचन । मदो मत:-प्रथमा एक० कृ० किया। अथे अर्थान आदपधाने आत्मप्रधानात जि- णक्खादे जिनाण्यालान्-सप्तमी एकवचन । निरुक्ति-प्रकृष्टेन' दधाति इति प्रधान (प्रधा+ युट्) समास-संयमः तपः सूत्रं चेति सयभापासूत्राणि तैः संप्रयुक्तः इति संयमतपःसूत्रसंप्रयुक्तः ।।२६४।।
दृष्टि---१-- प्राश्रयभूतकारण दृष्टि (६१ अ)।
प्रयोग—अात्मविशुद्धि के लिये सहजात्मस्वरूपकी प्रतीति रखते हुए संयमी तपस्वी तत्त्वज्ञानी श्रमणोंको ही उपासना भक्ति करना ।।२५३: ।
अब श्रमणाभास कैसा होता है यह कहते हैं---[संयमतपःसूत्रसंप्रयुक्तः अपि] सूत्र, संयम और तपसे संयुक्त भी साधक [यदि] यदि [जिनाख्यातान् ] जिनोक्त प्रात्मप्रधानान] आत्मप्रधान [अर्थान् ] पदार्थोंका [न श्रद्धत] श्रद्धान नहीं करता तो वह श्रिमणः न भवति] श्रमण नहीं है [इति मतः] ऐसा आगममें कहा है ।
तात्पर्य---सूत्रज्ञान संयम तपसे युक्त भी साधक यदि प्रात्मज्ञानी नहीं है तो वह धमरा नहीं है।
टोकार्थ-पागमका ज्ञाता भी, संयत भी, तपमें स्थित भी साधक जिनोक्त अनन्त पदार्थोंसे भरे हुये विश्वका--जो कि अपने प्रात्माके द्वारा शेयरूपसे पिया गया होनेके कारण प्रात्मप्रधान है उसका जो जीव श्रद्धान नहीं करता वह श्रमणाभास है।
प्रसंगविवरण- अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि श्रमणोंके प्रति ही अभ्युत्था
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