Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 487
________________ ४७३ प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका पदेशप्रवृत्तिश्च शुभोपयोगिनामेव भवन्ति न शुद्धोपयोगिनाम् ॥२४८।। सरागाणं सरागाणां-बल्ली बहुवचन । निरुक्ति--शिष्यते असो शिष्यः (शिस् + क्या) शासु अनुशिष्टौं अदादि । समास-प्रदानं च ज्ञानं च दर्शनज्ञाने तयोः उपदेशः दर्शनज्ञानोपदेशः शिष्यस्य ग्रहणं शिप्यग्रहण, (जिनेन्द्रस्य पूजा जिनेवपूजा तस्याः उपदेशः जिनेन्द्रपूजोपदेशः ।)२४८ ।। प्रवृत्ति, उनके पोपणको प्रवृत्ति और जिनेन्द्रपूजाके उपदेशको प्रवृत्ति ये सब शूभोपयोगियों के ही होती हैं, शुद्धोपयोगियोंक नहीं। प्रसंगधिबार – अनन्तरपूर्व गाथामे शुभोपयोगी श्रमणोंकी प्रवृत्ति दिखाई गई थी। अब इस गाथा में बताया गया है कि उक्त प्रवृत्तिया शुभोपयोगियोंके ही होती हैं। तथ्यप्रकाश--(१) अनुग्रहपूर्वक दर्शन ज्ञानके उपदेशकी प्रवृत्ति करना शुभोपयोगियों के ही होती है शुद्धोगयोगियोंके नहीं, क्योंकि उपदेशप्रवृत्ति सरागचर्या है । (२) शिष्यों के संग्रहणकी प्रवृत्ति व शिष्यों का अन्तर्वाह्मयोषणप्रवृत्ति शुभोपयोगि योंके ही होती है, शुद्धोपयोगियोंके नहीं, क्योकि ऐसी प्रवृत्ति शुभरामपूर्वक ही होती है । (३) जिनेन्द्रपूजन के उपदेशको प्रबत्ति भी शूभोपयोग योंकी होती है, शुद्धोपयोगियोंके नहीं, क्योंकि शुभप्रवृत्तिका उपदेश भी सरागचर्या है । (४) ऐसी शुभ प्रवृप्तियां निन्दित नहीं है, क्योंकि शुभोपयोग में इन प्रवृत्तियों का आगममें वान है। सिद्धान्त-- (१) शुभ योगियोंके शुभ क्रियायें शुद्धात्मानुरागसे होती हैं। दृष्टि ---- १ -- क्रियान य (१९३)। प्रयोग--शुद्धोपयोग न पानेकी स्थितिमें शुद्धोपयोग का लक्ष्य न छोडकर शुभोपयोग की उक्त क्रियायें करना ॥२४८!| अब सभी प्रवृत्तियां शुभोपयोगियोंके ही होती हैं यह अवधारित करते हैं----[यः अपि] जो कोई भी श्रमहा नित्यं ] सदा [चातुर्वर्णस्य] चार प्रकारके [श्रमणसंघस्य] श्रमण संघ का [नित्यं] सदा [कायविराधनरहित] छह कायको विराधनासे रहित [उपकरोति ] उपवार करता है, [सः अपि] वह भी [सरागप्रधानः स्यात् ] सरागधर्म है प्रधान जिसके ऐसा शुभोपयोगी है। ___ तात्पर्य-धमणोंका उपकार करने वाले श्रमण भी शुभोपयोगी हैं। टीकार्य --- संयमको प्रतिज्ञा की हुई होनेसे षट्कायके विराधनसे रहित जो कुछ भी, शिद्धात्मपरिणतिक रक्षण निमित्त भूत, चार प्रकारके श्रमणसंघका उपकार करनेको प्रवृत्ति है वह सभी राम प्रधानताको कारण शुभोपयोगियोंके ही होती है, शुद्धोपयोगियोंके कदाचित् भी 85688888888888 RESitamasaniinma nNAMATARREARSMS ANGANAK SRIG नहीं । MAKRANI ind

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