Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 496
________________ Emaamients ४५२ सहजानन्दशास्त्रमालाया ............ SanmamaliRIBRAI NRitttttimoomya श्रमणाना, गृहिण तु समस्तबिरते रभावेन शुद्धात्मप्रकाशनस्याभावात्कषायसद्भावात्प्रवर्तमानोऽपि स्फटिकसंपर्केरणाकतेजस इवैधसी रागसंयोगेन शुद्धात्मनोऽनुभवात्क्रमतः परमनिसिौख्यकारणत्वाच्च मुख्यः ॥२५४॥ षष्ठो बहुवचन । भणिया भणिता-प्रथमा एक० कृदन्त क्रिया। ता तया-तृतीया एक । परं मोक्षं सो. त्यं-द्वितीया एक० । लहदि लभते-वत० अन्य एक क्रिया । वा त्ति इति एव--अव्यय ।।२५४॥ वृति वाले रोगादिसे आक्रान्त श्रमणोंकी वैयावृत्ति के लिये अावश्यक हो तो लौकिक जनोंसे भी संभाषण करते हैं । अब इस गाथा में उक्त शुभोपयोग गौण मुख्य विभाग बताया गया है । तथ्यप्रकाश-~-(१) शुद्धात्मानुरागसे सम्बन्धित प्रशस्त चर्याको शुभोपयोग कहते हैं । (२) यह शुभोपयोग सकलनतोके कषायकणाके सद्भावसे हुआ है तो भी श्रमणोंके गौणरूपसे होना चाहिये, क्योंकि प्रशस्त राग भी शुद्धात्मवृत्तिके विरुद्ध है । (३) गृहस्थ जनोंके शुभो. पयोग मुख्य रूपसे है, क्योंकि गृहस्थ के सकलद्रत तो है नहीं सो शुद्धात्मत्वका प्रकाशन नहीं पाता, तो भी शुद्धात्मानुरागयोगी प्रशस्त रागके संयोगसे गृहस्थको शुद्धात्माका अनुभव होता व परम्पत्या परमनिर्वाणके आनन्दका कारण बनता है । (४) सम्यक्त्वकी अपेक्षासे श्रमणको ब गृहस्थको शुद्धात्माको ही आश्रय है । (५) चारित्रकी अपेक्षासे श्रमणके शुद्धात्मवृत्ति मुख्य होनेसे शुभोपयोग गौरण है । (६) सम्यग्दृष्टि गृहस्थ के शुद्धात्मवृत्तिका प्रकाशन न होनेसे अशुभ से हटनेके लिये शुभोपयोग मुख्य है । (७) सम्यग्दृष्टि गृहस्थके अशुभसे छूटने के लिये जो शुभोपयोगका पौरुष चल रहा है वह भी शुद्धात्मवृत्तिका ही मन्द पुरुषार्थ है । (८) शुद्धात्मद्रव्यके मन्द पालम्बनसे अशुभ परिणति हटकर शुभ परिणति होती है । (६) शुद्धात्मद्रव्यके दृढ़ मालम्बनसे शुभ परिणति भी हट जाती है और शुद्ध परिणति हो जाती है । सिद्धान्त-१-- सम्यग्दृष्टि गृहस्थके शुभोपयोग मुख्यतया है । २- श्रमणके शुद्धात्मवृत्ति मुख्य है। दृष्टि--१- पुरुषकारनय (१९३) । २- अनीश्वरनय (१८६)। प्रयोग- कषायकणसद्भावसे योगप्रवृत्ति प्रा पड़नेपर सुद्धात्मवृत्ति के पौरुषको विधेयता न भूलकर शुभोपयोगरूप प्रवर्तन करना ।।२५४।। अब शुभोपयोगका कारणके वैपरीत्यसे फलका वैपरीत्य होता है यह सिद्ध करते हैं- [इह सस्यकाले नानाभूमिगतानि बीजानि इव] इस जगतमें धान्यकालमें अनेक प्रकार की भूमियोंमें पड़े हुये बीजकी तरह [प्रशस्तभूतः रागा] प्रशस्तभूत राग [वस्तु विशेषेरग] पात्र भेदसे विपरीतं फलति] विपरीत रूपसे फलता है । BIHARIBANAR umetowwwcom

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