Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 492
________________ ४७८ सहजानन्दशास्त्रमालायां अथ प्रवृत्त कालविभागं दर्शयति-- रोगेण वा जुधाए तण्हाए वा समेण वा रूढं । दिट्टा सम साहू पडिवज्जदु श्रादसत्तीए ॥२५२।। रोग क्षुधा तृष्णासे, श्रमसे प्राक्रान्त श्रमणको लखकर । आत्मशक्ति अनुसार हि, मुनि उसका प्रतीकार करे ॥२५॥ रोगेण वा शुधया तृपया या रूढम् । दृष्ट्वा श्रमणं साधुः प्रतिपयतामात्माक्त्या ।। २५२ ।। यदा हि समधिगतशुद्धात्मवृत्तेः श्रमरणस्य तत्प्रच्यावन हेनोः कस्यायुपसर्गस्योपनिपातः 'नामसंज्ञ--रोग वा छुधा तण्हा वा सम वा रूढ समण साह आदसत्ति। धातुसंज्ञ- दिस प्रेक्षशो दाने च, पडि पज्ज गतौ । प्रातिपदिक ----रोग वा क्षुधा राणा वा सम वा रूट श्रमण साधु आत्मशक्ति । मूलधातु-शि प्रेक्षण, प्रति पद गतौ । उभयपदविवरणरोगेण क्षुधाए क्षधया तहाए तृष्णया समेण श्रमेणतृतीया एक० । चा-अव्यय । रूह सभणं श्रमणं-द्वितीया एक० । दिदा दृष्टवा-सम्ब सिद्धान्त--- शुभोपयोगी श्रमण शुद्धात्मचर्यायुक्त अन्य श्रमणोंका उपकार तैयादृत्य करते हैं। दृष्टि ---- १ --- क्रियानय (१९३) । प्रयोग- शुद्धात्मोपलब्धिके निमित्त शुद्धात्मज्ञानदर्शनचर्यायुक्त शुद्ध जिनमार्गानुया. यियोंका यावृत्य करना ॥२५.१॥ प्रद प्रवृत्तिका कालविभाग बतलाते हैं—[रोगेरण] रोगसे, [वा क्षुधया] अथवा शुधास, [वा तृष्णया] अथवा तृषासे [वा श्रमेण] अथवा श्रमसे रूढम्] अाक्रांत [श्रमरण] श्रमणको [दृष्ट्वा ] देखकर [साधुः] साधु [प्रात्मशक्त्या, अपनी शक्तिके अनुसार [प्रतिपद्यताम्] वैयावृत्यादि करे । तात्पर्य -पीड़ासे पाक्रान्त श्रमणको देखकर साधु यथाशक्ति उसकी सेवा करे । टीकार्थ---जब शद्धात्मपरिपातिको प्राप्त श्रमणको, शुद्धवृत्तिसे च्युत करे ऐसा कारभूत कोई भी उपसर्ग पा जाय, तब वह काल, शुभोपयोगी को अपनी शक्ति के अनुसार प्रतिकार करनेको इच्छारूप प्रवृत्तिकाल है; और उसके अतिरिक्तका काल अपनी शुद्धात्मपरिणतिकी प्राप्तिके लिये केवल निवृत्तिका काल है । प्रसंगविवरर..... अनन्तरपूर्व गाथामें शुभोपयोगियोंको प्रवृत्तिका विषय दिखाया गया था। अब इस गाथामें प्रवृत्तिका कालविभाग बताया गया है । तथ्यप्रकाश..( १) जब शुद्धात्मवृत्ति को प्राप्त श्रमणके शुद्धात्मवृत्तिसे डिगाने वाले Melmaidaan

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