Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 458
________________ सहजानन्दशास्वमालायां AVHIRNAMENT.................... ज्ञानस्वभावस्यैकस्य परमात्मनो ज्ञानमपि न सिन्यत् । परात्मपरमात्मज्ञान शुन्यस्य तु द्रव्यकारवधेः शरीरादिभिस्तत्प्रत्ययर्मोहरागद्वेषादिभावश्चसहस्यमाकलयतो बध्यघातकविभागाभावान्मोहादिद्रव्यभावकर्मणो क्षपणं न सिद्धयत् । तथा च शेयनिष्ठतथा प्रतिवस्तु पातोत्पातपरिरगतत्वेन झप्ने रासंसाराल्परिवर्तमानायाः परमात्मनिष्ठत्वमन्तरेणानिवायपरिवर्ततया ज्ञप्तिपरिवर्तरूपकर्मणां क्षपणमपि न सिद्धयत् । प्रतः कर्मक्षपणाथिभिः सर्वधागमः पयुपास्य: ।।२३३॥ समास- आगमेन होनः आगमहीनः ॥२३॥ हुमा विवेकहीन होकर अपने में व पात्मक्षेत्रावगाही शरीर में यह मैं हूं यह पर हैं ऐसा ज्ञान नहीं कर पाता । ८- आगमहोन मोह मलीमस दिवेकहीन नीच स्वभावमें व उपयोगमिश्रित मोह, राग, द्वेष, भावोंमें ''यह मैं हूँ यह पर है" ऐसा ज्ञान नहीं कर पाता । --- सहजचैतन्य मात्र अन्तस्तत्वका अनुभव हुए बिना वास्तव में स्व पर का भेदविज्ञान नही हो पाता । १०स्वभावका अनुभव स्वपरनिश्चायक प्रागमोपदेशका प्रवधारण हुए बिना नहीं हो सकता । ११-स्वभावका अनुभव परमात्मस्वरूप निश्चायक प्रागमोपदेशका अबधारण हुए बिना भी नहीं हो पाता, प्रागमहीन मोही जीव ज्ञानस्वभावमय परमात्माका भी ज्ञान नहीं कर सकता । १२- परमात्मा ज्ञानमात्र है, उत्कृष्ट ज्ञानस्वरूप है जिसमें उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक समस्त पदार्थ ज्ञेय होते ही है ऐसे प्रतापवंत परमात्मस्वरूपका ज्ञान प्रात्मस्वभावके परिचय बिना नहीं हो पाता । १३- स्वपरज्ञानशून्य व परमात्मज्ञानशून्य जीवके यह विवेक नहीं रहता कि मोहादि द्रव्य कर्म व भापकर्म घातक है और यह मैं. प्रात्मपदार्थ वध्य हूं। १४अज्ञानीके वध्य धातकविभागका प्रभाव होनेका कारण यह है कि उसने द्रव्यकर्मारब्ध शरीरा. दिकोंके साथ व द्रव्यकर्म विपाकनिमित्तक मोह रागद्वेषादिभावों के साथ अपनी सकता मान ली है । १५-बध्यघातकविभाग न होनेसे प्रज्ञानीके द्रव्यकोका ब भावकोका क्षपण नहीं हो सकता । १६-प्रागमहीन स्वभावानुभवरहित जीवके शप्तिपरिवर्तरूप कर्मोंका भी प्रभाव नहीं हो सकता। १७-जानकारीके विषमरूपसे बदलते रहने को अप्तिपरिवर्त कर्म कहते हैं। १८-शप्ति ज्ञेयनिष्ठ है सो प्रत्येक वस्तुके उत्पाद विनामरूप परिएमते रहने के कारण शप्ति प्रनादिसे ही परिवर्तमान होती चली माई है। १६-परमात्मत्वमें निष्ठ हुए बिना शप्तिका परिवर्तन दूर नहीं हो सकता । २०- भागमहीन जीवके स्वपरज्ञान नहीं, परमात्मस्वरूप ज्ञान नहीं, स्वानुभव नही, द्रव्यभावकोका क्षपए नहीं, शप्तिपरिवर्तकर्मका क्षपण नहीं होता प्रतः कर्मक्षपणके इच्छुक पुरुषोंको सर्व प्रयत्नपूर्वक प्रागमको भली भांति उपासना करना चाहिये ।

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