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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका
प्रयागमज्ञानतत्पूर्वं तत्त्वार्थश्रद्धानतदुभयपूर्व संयतत्वानां यौगपद्यस्य मोक्षमार्गत्वं नियमयति--- यागमपुव्वा दिट्टी व भवदि जस्सेह संजमों तस्स । त्थीदि भादि सुतं असंजदो होदि किध समणो ॥२३६॥
श्रमपूर्वक दृष्टी, है नहि जिसके न संयम भि उसके ।
ऐसा हि सूत्र भाषित, असंयमी हो श्रमरण कैसे ॥२३६॥
गमपूर्वा दृष्टिर्न भवति यस्येह संयमस्तस्य । नास्तीति भगति सूत्रमसंयतो भवति कथं श्रमणः ||२३६॥ RE हि सर्वस्यापि स्यात्कार के तनागम पूर्विकया तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षणया दृष्टया शून्यस्य स्वपरविभागाभावात् कायकषायैः सहैक्यमध्यवसतोऽनिरुद्धविषयाभिलाषतथा षड्जीवनिकायघातिनो भूत्वा सर्वतोsपि कृतप्रवृत्तेः सर्वतो निवृस्यभावात्तथा परमात्मज्ञानाभावाद् ज्ञेयचक्रक्रमाक्रमण निरर्गलसिला ज्ञानरूपात्मतत्वैकाग्रयप्रवृत्त्यभावाच्च संयम एव न तावत् सिद्धत् ।
नामसंज्ञ -- आगमपुष्वा दिट्टि ण ज संजमो त ण इति सुत्त असंजयो किध समणी । धातुसंज्ञ--भव ताय, अस सत्तायां, भण कथने । प्रातिपदिक- आगमपूर्वा दृष्टि न यत् इह संयम तत् न इति सुत्त असंमत कथं श्रमण। मूलधातु भू सत्तायां, अस् भुवि भण शब्दार्थः । उभयपद विवरण- आगमपुब्वा आगपूर्वा दिट्टी दृष्टि: संगमो संयमः सुतं सूत्रं असंजदो असंयतः समणो श्रमणः प्रथमा एकरु । ण न इदि लक्षण वाली दृष्टिसे शून्य सभीको प्रथम तो संयम ही सिद्ध नहीं होता, क्योंकि ( १ ) स्वपरके विभाग के प्रभाव के कारण काय और कषायोंके साथ एकताका अध्यवसाय करने वाले जीवको विषयाभिलाषाका निरोध नहीं होनेसे छह जीवनिकायके घाती होकर सर्वत्तः प्रवृत्ति होनेसे सर्वतः निवृत्तिका प्रभाव है । तथा ( २ ) परमात्मज्ञान के प्रभाव के कारण ज्ञेयसमूहको क्रमशः जानने वाली निरर्गल इप्ति होनेसे ज्ञानरूप श्रात्मतत्वमें एकाग्रताको प्रवृत्तिका प्रभाव है । और इस प्रकार जिनके संयम सिद्ध नहीं होता उन्हें सुनिश्चित ऐकाग्रचपरिणतिरूप श्रामण्य होजिसका कि दूसरा नाम मोक्षमार्ग है, सिद्ध नहीं होता । श्रतः आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान और संतत्व यौगपद्य के हो मोक्षमार्गपना होनेका नियम किया जाता है ।
प्रसंगविवरण --- प्रनन्तरपूर्व गाथा में श्रागमसे ही सब कुछ यथार्थ दिखना बताया था। ग्रव इस गाथा में श्रागमज्ञान, श्रद्धान व संयमका एक साथ होनेमें ही मोक्षमार्गपना बताया है ।
तथ्यप्रकाश-- १- जिसके प्रागमपूर्वक दृष्टि नहीं है उसके संयम सिद्ध नहीं होता । २- प्रथम तो श्रागमसे हो मोक्षमार्गके प्रयोजनभूत तस्वकी श्रद्धाका साधक स्वपरपदार्थविज्ञान होता है । ३- श्रागमसे सुनिर्णीत पदार्थविज्ञान प्रमाणभूत है, क्योंकि ग्रागम द्वारा स्याद्वाद