Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 476
________________ ४६२ सहजानन्दशास्त्रमालायां श्रथेदमेव सिद्धागमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धानसंयतत्वयौगपद्यात्मज्ञानयोगपद्यसंयतत्वमै काचलक्षणश्रामण्यापरनाम मोक्षमार्गत्वेन समर्थयति दंसणा चरिते तीस जुगवं समुट्ठिदो जो दु । एयग्गगदो ति मदो सामण्णां तस्स पडिपुण्णं ॥ २४२॥ चारित्र ज्ञान दर्शन, तीनोंमें एक साथ जो उत्थित । एकाग्रगत हुआ वह उसके श्रामण्य है पूरा ॥२४२॥ दर्शन ज्ञानचरित्रेषु त्रिषु युगपत्समुत्थितो यस्तु । एकाग्रगत इति मतः श्रामण्यं तस्य परिपूर्णम् ॥ २४२ ॥ ज्ञे यज्ञातृत्व तथाप्रतीतिलक्षणेन सम्यग्दर्शनपर्यायेण ज्ञेयज्ञातृतस्वतथानुभूत्तिलक्षणेन ज्ञानपर्यायेण यज्ञातृक्रियान्तरनिवृत्तिसूत्र्यमारणद्रष्टृज्ञातृतत्त्ववृत्तिलक्षणेन चारित्रपर्यायेण च त्रि नामसंज्ञ- दंसणणाणचरित ति जुगवं समुट्ठिद ज दु एयम्गगद ति मद सामण्ण त पडिष्ण । धातुसंज्ञ - मन्न अवबोधने । प्रातिपदिक दर्शनज्ञानचरित्र त्रियुगपत् समुत्थित यत् तु एकाग्रगत इति मत श्रातत् परिपूर्ण । मूलधातु- गनु ज्ञाने । उभयपदविवरण- दंसणणाणचरितेषु दर्दानज्ञानचारित्रेषुतीसु चारि [ त्रिषु ] इन तीनोंमें [ युगपत् ] एक ही साथ [समुत्थितः ] प्रवर्तित है, वह [ एकाग्र गतः ] एकाग्रताको प्राप्त है [ इति ] इस प्रकार [ मत्तः ] शास्त्र में कहा गया है [ तस्य ] उसके [ श्रामण्यं ] श्रामण्य [ परिपूर्णम् ] परिपूर्ण है । तात्पर्य --- दर्शनज्ञानचारित्र में श्रारूढ़ मुनिके परिपूर्ण श्रामण्य है । टोकार्थ-ज्ञेयतत्त्व और ज्ञातृतस्वकी यथार्थं प्रतीति जिसका लक्षण है ऐसा सम्यदर्शन पर्याय शेयतत्व और ज्ञातृतत्वकी तथा प्रकार अनुभूति जिसका लक्षण है ऐसा ज्ञानपर्याय ज्ञेय और ज्ञाताकी क्रियांतरसे निवृत्तिके द्वारा रचित दृष्टिज्ञातृतत्वमें परिरति जिसका लक्षण है ऐसा चारित्र पर्याय, इन पर्यायोंके और श्रात्मांके भाव्यभावकता के द्वारा उत्पन्न अति गाढ़ इतरेतर मिलन के बलके कारण इन तीनों पर्यायरूप युगपत् अंग अंगी भावसे परिणत श्रात्मा आत्मनिष्ठता होनेपर जो संयतपना होता है वह संवतपना, एकाग्रता लक्षण वाला श्रामण्य जिसका दूसरा नाम है ऐसा मोक्षमार्ग ही समझना चाहिये, क्योंकि वहाँ संगतपने पेय की भांति अनेकात्मक एकका अनुभव होनेपर भी, समस्त परद्रव्यसे निवृत्ति होनेसे एकाग्रता प्रगट है । वह संयतत्व भेदात्मक है, इसलिये 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्षमार्ग है' इस प्रकार पर्यायप्रधान व्यवहारनयसे उसका प्रज्ञापन है; वह (मोक्षमार्ग) अभेदात्मक है इसलिये 'एकाग्रता मोक्षमार्ग है' इस प्रकार द्रव्यप्रधान निश्चयनयसे उसका प्रज्ञापन है; समस्त ही पदार्थ भेदाभेदात्मक है, इसलिये 'वे दोनों अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तथा एकाग्रता

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