Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 451
________________ प्रचचनसार-सप्तदशांगी टोका प्रवर्तमानस्य मृद्वाचरणप्रवृत्तत्वादलो लेपो भवत्येव नद्वरमुत्सर्गः देशकालज्ञस्यापि बालवृद्धा तलावानुरोधेनाहारविहारयोः प्रवर्तमानस्य मुढावरण प्रवृत्तत्वादल्प एव लेपो भवति तद्वरमपवादः । देशकालज्ञस्यापि बालवृद्धश्रान्तग्लानत्वानुरोधेनाहारविहारषोरल्पलेपभयेनाप्रवर्तमानस्यातिककशाचरणीभूयाक्रमेण शरीरं पातयित्वा सुरलोकं प्राप्यद्वास्तसमस्तसंयमामृतभारस्व तपसोऽवकाशतयाशक्य प्रतिकारो महान् लेपो भवति । तन्न श्रेयानपवादनिरपेक्ष उत्सर्गः । देशकालज्ञस्यापि बालवृद्धश्रान्तग्लानत्वानुरोधेनाहारविहारयोरल्पलेपत्वं विगणय्य यथेष्टं प्रवर्तमनस्य मृद्वाचरणीभूय संयमं विराध्यासंयत जनसमानोभूतस्थ तदात्वे तपसोऽनवकावायाशक्य प्रतिकारी महान लेयो भवति तन्न श्रेयानुत्सर्गनिरपेक्षोऽपवादः । मतः सर्वयोत्सर्गापवादविरोधदीस्थित्यमाचरस्य प्रतिषेध्यं तदर्थमेव सर्वयानुगम्यश्च परस्परसापेक्षोत्सर्गापवादविजम्भितदेस देश काल समं मं खनं क्षमो उवत्रि उपाधि-द्वितीया एकवचन । जाणित्ता ज्ञात्वा सम्बधार्थप्रक्रिया। तान - द्वि० बहु० | समणी श्रमणः अप्पसेवी अपने सरेस-प्रथमा एक० । व वा जदि यदि अव्यय । परस्पर सापेक्ष उत्सर्ग और अपवादसे जिसकी वृत्ति प्रगट होती है ऐसा स्याद्वाद सर्वेचा मनुसरण करने ओोग्य है । इत्येवं इत्यादि । श्रर्थ - इस प्रकार विशेष पादरपूर्वक पुराण पुरुषीके द्वारा सेवित, उत्सगं और अपवाद द्वारा अनेक पृथक पृथक भूमिकाओंको प्राप्त करके यति क्रमश: अतुल निवृत्ति करके, चैतन्य सामान्य और चैतन्य विशेषरूप जिसका प्रकाश है ऐसे निज द्रव्य में सर्वतः स्थिति करे । ४३७ प्रसंग विवरण — अनन्तरपूर्व गाथा में बताया गया था कि उत्सर्गमार्ग व प्रपवादमार्ग की मैत्रीपूर्वक माचरण ठीक बैठता है। घब इस गायामें बताया गया है कि उत्सव प दमा विरोध रखनेसे आचरणको दुःस्थितता हो जाती है । तथ्यप्रकाश - ( १ ) श्रमण देश बाल श्रम क्षमता उपधि ( देहस्थिति) जानकर माहार बिहार में प्रवर्तन करता है । (२) क्षमता व ग्लानताका कारण उपवास है । (३) देह बालपना, gavar satara रोगीपनाका आधार है । ( ४ ) चूंकि बालस्व, वृद्धत्व व ग्लानका वार उपधियाने देह है सो देहस्थिति जानकर जो बात कहनी है वह बाल वृद्ध, श्रान्त (चके हुए) ग्लान श्रमणोंके लिये ही कहनी है । (५) देश कालके जाननहार तथा बालपना वृद्धरना आन्तपना व ग्लानपनाके अनुसार प्राहार विहार में प्रवर्तमान श्रमणके कोमल प्राचरणमें प्र तपना होनेसे प्रल्प लेक होता ही है, इस कारण उत्सर्गमार्ग श्रेष्ठ है । ( ६ ) देशकालन तथा बालवृद्धान्तग्लानपना के अनुरोधसे आहार विहार में प्रवर्तमान श्रमणके कोमल आचरण में प्रबर्तना होनेसे अल्प ही लेप होता है इस कारण वह अपवादमार्ग भला है । (७) यदि कोई

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