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सहजानन्दशास्त्रमालायां वृत्तिः स्थाबादः ॥ इत्येवं चरण पुराणपुरुष्टं विशिष्टादरैरुत्सर्गादपवार विपरीः पृथग्भूमिकाः । अाक्रम्य क्रमतो निवृत्तिमतुलां कृत्वा यक्षिः सर्वतश्चित्सामान्यविशेषभासिनि निजद्रव्ये करोतु स्थितिम् ॥१५|| इत्याचरण प्रज्ञापन समाप्तम् ।।२३१ 11 बदि बर्तते-बर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया। निर्मित -क्षमणं क्षमाः (क्षम् + अङ् + टा) क्षम सहने । समास-अल्पश्चासो लेपश्चेति अल्पलेपः अल्पलेप यस्य सः अल्पलेपी ।।२३।। श्रमण यह सोचकर कि बालवृद्धश्रान्तग्लानत्वके अनुरोधवश भी पाहार विहार में अल्प लेप भी क्यों हो, इस भय से बाहार विहार सर्वथा बंद कर दे और अनशनादि अत्यन्त कठोर प्रापरण करके मकालमें शरीरको हटा दे याने मरण कर ले तो ज्यादासे ज्यादा देव ही तो हो जायगा सो वहाँ संयम रंच नहीं, तप रंच नहीं सो तो और बड़ा अपराध हो जायेगा । (८) मावश्यक प्रपवादमार्गको त्यागकर उत्सगं मागेकी हो हठ करके मरण कर असंयमी जीवन पाने में तो कई गुणा लेप अपराध हो जाता इस कारण अपवादनिरपेक्ष उत्सर्ममार्ग भला नहीं। (8) यदि कोई श्रमण "बालवृद्धत्वादिके अनुरोधसे पाहार विहार करने में अल्प हो तो लेप (अपराध) है उसको क्या गिनना" यह सोचकर स्वच्छन्द प्राहार विहार में लग जाय, एकदम कोमल नाचरणमें लग जाय तो संयमका पात करके प्रसंयमोजनके ही समान वह हो गया, फिर तो इस ही तपका अवकाश न होनेपर महान् अपराधी हो गया । (१०) उत्सर्गमार्गको
उपेक्षा करके मात्र अपवादमार्गसे ही चलकर स्वच्छन्द प्रवृत्ति करने में इसी भवमें महान् वि. *गाड़ हो जाता है, इस कारण उत्सर्गनिरपेक्ष अपवादमार्ग श्रेयस्कर नहीं है। (११) उत्सर्ग पोर अपवादमार्गमें विरोध करके किसी एक मार्गकी हठ रखनेसे प्राधरण सुस्थित नहीं होता पोर वह हठयोग प्रतिषेध्य है । (१२) आचरण भला घले जिससे मोक्षमार्गसे न डिगे इसके लिये उत्सर्गमार्ग व अपवादमार्गकी सापेक्षताको प्रकट करने वाला स्थावाद अनुसरणीय है।
सिद्धान्त----(१) अविकारस्वभाव प्रात्माको वर्तमान विकारस्थितिसे हटने के प्रोग्राम में परस्पर सापेक्ष उत्सर्ग व अपवाद मार्गसे साधनाका प्रारंभ होता है।
दृष्टि-१- परस्परसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (२६प्र)। .. प्रयोग---अपवादसापेक्ष उत्सर्गमार्गकी साधनासे अपने लक्ष्यभूत सहज चित्स्वभादमें उपयुक्त होना ।।२३१॥
इस प्रकार 'प्राचरण प्रज्ञापन' समाप्त हुप्रा।
अब श्रामण्य दूसरा नाम है जिसका ऐसे एकाग्रहालक्षग वाले मोक्षमार्गका प्रज्ञापन है। उसमें प्रथम मोक्षमार्गके मूल साधनभूत आगममें व्यापार कराते हैं... [श्रमण:] श्रमण
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