Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 436
________________ ४२२ सहजानन्दशास्त्रमालाया प्रय केऽपवादविशेषा इत्युपदिशति-- उचयरणं जिणमग्गे लिंगं जहजादरूवमिदि भणिदं । गुरुवयणं पि य विणश्रो सुत्तज्झयणं च णि द्दिटें ॥२२५॥ जिनमार्गमें उपकरण, लिङ्ग यथाजातरूप बतलाया । गुरुवचन, विनय सूत्रों का अध्ययन भि कहा प्रभुने ।२२५॥ उपकरणं जिनमार्ग लिङ्ग यथाजातरूपमिति भणितम् । गुरुवचनमपि च विनयः सूत्राध्ययनं च निर्दिष्टम् । यो हि नामाप्रतिषिद्धोऽस्मिन्नुएघिरपवादः स खलु निखिलोऽपि श्रामण्यपर्यायसहकारि. कारणत्वेनोपकारकारकत्वादुपकरणभूत एवं न पुनरन्यः । तस्य तु विशेषा सर्वाहार्यवजित्तसहजरूपापेक्षितयथाजातरूपत्वेन बहिरंगलिंगभूताः कायपुद्गलाः श्रूयमागतत्काल बोधकगुरुगीर्यमाणात्मतत्त्वद्योतकसिद्धोपदेशवचनपुद्गलास्तथाधीयमाननित्यबोधकानादिनिधनशुद्धात्मतत्त्वद्योतनस. नामसंज-उवयरण जिणमग्ग लिंग बहादरूव इदि भणिद गुरुवयण पि य विम सुत्तज्झयण च गिद्दिट्ट । धातुसंज्ञ- भण कथने । प्रातिपदिक-उपकरण जिनमार्ग लिङ्ग यथाजातरूप इति भणित गुरुवचन अपि च विनय सूत्राध्ययन च निदिष्ट । मूलधातु-~मण शब्दार्थः। उभयपदविवरण- उवयरणं लिंगभूत कायपुद्गल; (२) सुने जा रहे तत्कालबोधक, गुरुद्वारा कहे जा रहे प्रात्मतत्त्वन्धोतक, सिद्ध उपदेशरूप वचनपुद्गल; तथा (३) अध्ययन किये जा रहे नित्यबोधक, अनादिनिधन शुद्ध प्रात्मतत्वको प्रकाशित करने में समर्थ श्रुतज्ञानके साधनभूत शब्दात्मक सूत्रपुद्गल; और (४) शुद्ध प्रात्मतत्त्वका प्रकाशन करनेमें समर्थ जो दर्शनादिक पर्याये, उन रूपसे परिणमित पुरुषके प्रति विनीतताका अभिप्राय प्रवर्तित करने वाले चित्र पुद्गल । यहाँ यह तात्पर्य है कि कायकी भांति वचन और मन भी वस्तुधर्म नहीं है । प्रसङ्गविवरण----अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि उत्सर्ग हो वस्तुधर्म है, अपवाद नहीं । अब इस गाथामें बताया गया है कि वे अपवादविशेष कौन कौन हैं जो विधेय होनेपर भी वस्तुधर्म नहीं है । तथ्यप्रकाश.---१- जो श्रामण्यपर्यायका सहकारी कारण होनेसे उपकारक उपकरण है वही सब अप्रतिषिद्ध उपधिअपवादमागमें कहा गया है। (२) धामण्यपर्यायको सहकारिता के विरुद्ध, अनुपकारक अन्य कुछ भी पदार्थ अप्रतिषिद्ध उपकरण नहीं कहलाता । (३) सर्व परवस्तुरहित दंगंबरी मुद्रासे युक्त शरीर उपकरण है । ४- शुद्धात्मतत्त्वके द्योतक गुरुवचन उपकरण हैं । ५- अनादिनिधन सहजात्मस्वरूपके द्योतनमें समर्थ श्रुतज्ञान के साधनीभूत शन्दात्मकसूत्रपुद्गल अर्थात् शास्त्राध्ययन उपकरण है । ६- शुद्धात्मतत्वको प्रकट करने वाले

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