Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 438
________________ mmittee souveASIA RANC2. ST000000000मासस्य ४२४ सहजानन्दशास्त्रमालायां प्रथाप्रतिषिद्धशरीरमानोपधिपालनविधानमुपदिशति इहलोगणिरावेक्खो अप्पडिबद्धो परम्मि लोयम्हि । जुत्ताहारविहारो रहिदकसायो हवे समणो ॥२२६॥ इहलोकनिरापेक्षी, व्यपगत परलोकको भि तृष्णासे । युक्ताहारविहारी, व कषायरहित श्रमरण होता ॥२२६॥ इहलोकनिरपेक्षः अप्रतिबद्धः परस्मिन् लोके। युक्ताहारविहारो रहितकषायो भवेत् श्रमणः ॥ २२६ ।। ___ अनादिनिधनकरूपशुद्धात्मतत्त्वपरिणतत्वादखिलकर्मपुद्गलविपाकात्यन्त विविक्तस्वभा. वत्वेन रहितकषायत्वात्तदात्वमनुष्यत्वेऽपि समस्तमनुष्यव्यवहारबहिर्भूतत्वेनेहलोकनिरपेक्षत्वात्त. पाभविष्यदमादिभावानुभूतितृष्णाशून्यत्वेन परलोकाप्रतिबद्धत्वाच्य परिच्छेद्यार्थी पलम्भप्रसि ___ नामसंज्ञ-- इहलोगणिरावेदन अप्पडिबद्ध पर लोय जुत्ताहारविहार रहिंदकसा समण । धातुसंज्ञ---- हर सत्ता । प्रातिपदिक इहलोकनिरपेक्ष अप्रतिबद्ध पर लोवा युक्ताहारविहार रहित कषाय श्रमण । मूलधातु-भू सत्तायां । उभयपद विवरण-- इहलोगणिरावेवखो इहलोकनिरापेक्षः अपडिबद्धो अप्रतिबद्धः जुत्ताहारविहारो युक्ताहारविहारः रहिदकसाओ रहितकषायः समणो श्रमण:--प्रथमा एक । परम्मि परे दीपकमें तेल डाले जाने और दीपकको उसकाये जानेकी तरह शुद्ध प्रात्मतत्वकी उपलब्धि की सिद्धिके लिये शरीरको खिलाने और चलानेके द्वारा युक्ताहारबिहारी होता है । यहाँ तात्पर्य यह है कि---चूंकि श्रमा कषायरहित है इस कारण वर्तमान शरीरके अनुरागसे या दिव्य शरीरके अनुरागसे आहार विहार में प्रयुक्तरूपसे प्रवृत्त नहीं होता; किन्तु शुद्धात्मतत्त्वको उपलब्धिकी साधकभूत श्रामण्यपर्यायके पालन के लिये ही केवल युक्ताहारविहारी होता है। . प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें अपवादविशेषोंको बताया गया था। अब इस गाथामें अप्रतिषिद्ध शरीरमात्र उपधिके पालनका विधान बताया गया है । तथ्यप्रकाश--(१) श्रमणके अनादि अनंत एकस्वरूप घिद्ब्रह्म को दृष्टि, उपासना, अनुभूति व रति रहती है । (२) शुद्ध चिद् ब्रह्म समस्त कर्म पुद्गलविपाकसे अत्यन्त भिन्न स्वभाव वाला है । (३) क्रोध, मान, माया, लोभ, इन्द्रियज सुख, दुःख आदि विकार पुद्गल कर्मके विपाक हैं । (४) अविकार सहजपरमात्मस्वरूप चिबाकी उपासना करने वाले श्रमण कषायरहित होते हैं । (५) श्रमण वर्तमानमें मनुष्य है तथापि कषायरहित व शुद्धात्मपरिणत होनेसे समस्त मनुष्यव्यवहारोंसे पृथक है । (६) श्रमण मनुष्यव्यवहारोंसे पृथक् होनेके कारण इहलोकनिरपेक्ष है अर्थात् इस लोककी अपेक्षावोंसे रहित है । (७) इस लोकको अपेक्षावोंका माघार घरोर है, किन्तु कषायरहित होनेके कारण श्रमणको वर्तमान शरीरमें अनुराग नहीं ESS SHIKETPRAKBAYEmissume Kaala

Loading...

Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528