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सहजानन्दशास्त्रमालायां प्रथाप्रतिषिद्धशरीरमानोपधिपालनविधानमुपदिशति
इहलोगणिरावेक्खो अप्पडिबद्धो परम्मि लोयम्हि । जुत्ताहारविहारो रहिदकसायो हवे समणो ॥२२६॥
इहलोकनिरापेक्षी, व्यपगत परलोकको भि तृष्णासे ।
युक्ताहारविहारी, व कषायरहित श्रमरण होता ॥२२६॥ इहलोकनिरपेक्षः अप्रतिबद्धः परस्मिन् लोके। युक्ताहारविहारो रहितकषायो भवेत् श्रमणः ॥ २२६ ।।
___ अनादिनिधनकरूपशुद्धात्मतत्त्वपरिणतत्वादखिलकर्मपुद्गलविपाकात्यन्त विविक्तस्वभा. वत्वेन रहितकषायत्वात्तदात्वमनुष्यत्वेऽपि समस्तमनुष्यव्यवहारबहिर्भूतत्वेनेहलोकनिरपेक्षत्वात्त. पाभविष्यदमादिभावानुभूतितृष्णाशून्यत्वेन परलोकाप्रतिबद्धत्वाच्य परिच्छेद्यार्थी पलम्भप्रसि ___ नामसंज्ञ-- इहलोगणिरावेदन अप्पडिबद्ध पर लोय जुत्ताहारविहार रहिंदकसा समण । धातुसंज्ञ---- हर सत्ता । प्रातिपदिक इहलोकनिरपेक्ष अप्रतिबद्ध पर लोवा युक्ताहारविहार रहित कषाय श्रमण । मूलधातु-भू सत्तायां । उभयपद विवरण-- इहलोगणिरावेवखो इहलोकनिरापेक्षः अपडिबद्धो अप्रतिबद्धः जुत्ताहारविहारो युक्ताहारविहारः रहिदकसाओ रहितकषायः समणो श्रमण:--प्रथमा एक । परम्मि परे दीपकमें तेल डाले जाने और दीपकको उसकाये जानेकी तरह शुद्ध प्रात्मतत्वकी उपलब्धि की सिद्धिके लिये शरीरको खिलाने और चलानेके द्वारा युक्ताहारबिहारी होता है । यहाँ तात्पर्य यह है कि---चूंकि श्रमा कषायरहित है इस कारण वर्तमान शरीरके अनुरागसे या दिव्य शरीरके अनुरागसे आहार विहार में प्रयुक्तरूपसे प्रवृत्त नहीं होता; किन्तु शुद्धात्मतत्त्वको उपलब्धिकी साधकभूत श्रामण्यपर्यायके पालन के लिये ही केवल युक्ताहारविहारी होता है। .
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें अपवादविशेषोंको बताया गया था। अब इस गाथामें अप्रतिषिद्ध शरीरमात्र उपधिके पालनका विधान बताया गया है ।
तथ्यप्रकाश--(१) श्रमणके अनादि अनंत एकस्वरूप घिद्ब्रह्म को दृष्टि, उपासना, अनुभूति व रति रहती है । (२) शुद्ध चिद् ब्रह्म समस्त कर्म पुद्गलविपाकसे अत्यन्त भिन्न स्वभाव वाला है । (३) क्रोध, मान, माया, लोभ, इन्द्रियज सुख, दुःख आदि विकार पुद्गल कर्मके विपाक हैं । (४) अविकार सहजपरमात्मस्वरूप चिबाकी उपासना करने वाले श्रमण कषायरहित होते हैं । (५) श्रमण वर्तमानमें मनुष्य है तथापि कषायरहित व शुद्धात्मपरिणत होनेसे समस्त मनुष्यव्यवहारोंसे पृथक है । (६) श्रमण मनुष्यव्यवहारोंसे पृथक् होनेके कारण इहलोकनिरपेक्ष है अर्थात् इस लोककी अपेक्षावोंसे रहित है । (७) इस लोकको अपेक्षावोंका माघार घरोर है, किन्तु कषायरहित होनेके कारण श्रमणको वर्तमान शरीरमें अनुराग नहीं
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