Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 445
________________ प्रवचनसार---सप्तदशाङ्गी टीका ४३१ सेवकत्वेन न च युक्तस्य । प्रतिपुर्णोदर एवाहारो मुक्ताहारः तस्यैवाप्रतिहतयोगत्वात् । प्रतिपुर्णोदरस्तु प्रतिहतयोगत्वेन कथंचित् हिंसायतनो भवन् न युक्तः । प्रतिहतयोगत्वेन न च युक्तस्य यथालब्ध एवाहारो युक्ताहारः तस्यैव विशेषप्रियत्व लक्षणानुरागशून्यत्वात् । श्रयथालवस्तु विशेषप्रियत्व लक्षणानुरागसेव्यमानत्वेन प्रसह्य हिंसायानीक्रियमाणो न युक्तः । विशेषप्रियस्वलक्षणानुरागसेवकत्वेन न च युक्तस्य । भिक्षाचरणेनवाहारो युक्ताहारः तस्यैवारम्भशूव्यत्वात् । श्रभैक्षाचरणेन त्वारम्भसंभवात्प्रसिद्ध हिंसायतनश्वेन न युक्तः । एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य । दिवस एवाहारो युक्ताहारः तदेव सम्यगवलोकनात् । श्रदि यथा धातुसंज्ञ - लभ प्राप्तौ । प्रातिपदिक-एक खलु तत् भक्त अप्रतिपुर्णोदर यथालब्ध चरण भिक्षा दिवा न रसापेक्ष न मधुमांसः । मूलधातु-डुलभष् प्राप्ती । उभयपद विवरण- एककः एकः तं सः भक्तं भक्तः अप होता हुआ योग्य नहीं है; और प्रतिहत योग वाला होनेसे पूरणोंदर आहार युक्त न हुएके भी श्राहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही आहार विशेषप्रियतास्वरूप अनुराग से शून्य है । प्रयथालब्ध आहार विशेषप्रियतास्वरूप अनुराग से सेवन किया जानेसे आत्यंतिक हिंसायन किया जाता हुआ योग्य नहीं है । और विशेष प्रियतास्वरूप अनुराग के द्वारा सेवन करने वाला होनेसे श्रयथालब्ध श्राहारयुक्त न हुएके भी भिक्षाचरणसे आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही प्रारंभशून्य है । भिक्षाचरण रहित श्राहारमें प्रारम्भका सम्भव होनेसे हिंसा यत्नव प्रसिद्ध है, अतः वह आहार योग्य नहीं है और ऐसे प्रहारके सेवन में अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होनेसे प्रभैक्ष्याचार युक्त न हुएके भी दिनका प्रहार हो युक्ताहार है, क्योंकि वही भली alति देखा जा सकता है । दिनके अतिरिक्त समय में श्राहार भली-भाँति नहीं देखा जा सकता, इसलिये उसके हिंसायतनत्व अनिवार्य होनेसे वह श्राहार योग्य नहीं है और ऐसे आहारके सेवनमें अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होनेसे श्रदिवसाहार युक्त न हुएके भी रसकी अपेक्षासे रहित आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही अन्तरंग शुद्धिसे सुन्दर है । रसकी अपेक्षासे युक्त आहार अन्तरंग अशुद्धिके द्वारा आत्यंतिक हिंसायतन किया जाता हुआ योग्य नहीं है । और उसका सेवन करने वाला प्रन्तरंग अशुद्धिपूर्वक सेवकप से रसापेक्ष आहार युक्त न हुए के भो मधुमास रहित आहार हो युक्ताहार है, क्योंकि उसके ही हिंसायतनत्वका प्रभाव है । मधु-मांस सहित आहार हिंसायतन होनेसे योग्य नहीं है । और ऐसे आहारके सेवन में अन्तरंग प्रशुद्धि व्यक्त होनेसेसमधुमास श्राहार युक्त न हुए भी कि यहाँ मधुमांस हिंसायतनका उपलक्षण है इसलिये समस्त हिंसायतनशून्य आहार ही युक्ताहार है । प्रसंगविवरण प्रनन्तरपूर्व गाथा में श्रमण के युक्ताहारपनेही सिद्धि की गई थी। अब

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