________________
४३४
सहजानन्दशास्त्रमालाया
स्यात्तथा संयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमेवाचरणमाचरणीयमित्युत्सर्गः । बालवृद्धश्रान्तरग्लानेन शरीरस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनभूतसंयमसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा बालवृद्धश्रान्तग्लानस्य स्वस्य योग्यं मृद्वेवाचरणमाचरणीय मित्यपबादः । बालवृद्धश्रान्तग्लानेन संयमस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनत्वेन मूलभूनस्य छेदो न यथा स्यातथा संयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमाचरणमाचरता शरीरस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधन भूतसंयमसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदो न यया स्यात् तथा बालवृद्धश्रान्तग्लानस्य स्त्रस्य योग्यं मृद्वप्याचरणामाचरणीमित्यपवादसापेक्ष उत्सर्गः । वालवृद्धश्रान्तग्लानेन शरीरस्य, शुद्धात्मतत्त्वसाधन भूतसंयमसाधनदेन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा बालवृद्धश्रान्तग्लानस्थ स्वस्य योग्यं मृदाचरणमाचरता संयमस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनधातुसंज्ञ-हव सत्तायां, चर गती । प्रातिपदिकः-- बाल वा वृद्ध वा समभिहत वा पुनर् ग्लान वा चर्या स्व. योग्या मूलच्छेद यथा न । मूलधातु-रले हर्ष क्षये, चर गत्यर्थः, भू सत्तायां । उभयपदविवरण-बालो बाल: बुड्ढो वृद्धः सममिहदो समभिहत: गिलामे म्लानः मूलच्छेद मुलच्छेदः-प्रथमा एकवचन । चरिय चर्या-द्वितीया एकवचन । सजोग्गं स्वयोग्यां-द्वि० एक० । चरदु चरतु-आज्ञार्थे अन्य पुरुष एक० किया। वा जधा यथा ण न-अव्यय । हवदि भवति-वर्तः अन्य एक क्रिया | निरुक्ति-- मन्यन्ते यत् विशेषण से स्वयोग्यां] अपने योग्य [चर्या चरतु] प्राचरण करे ।
तात्पर्य बाल, वृद्ध, रोगी, तपस्यासे थका हुआ कोई भी श्रमण अपन] आचरण ऐसा करे जिसमें मूल संयमका घात न हो।
_____टोकार्थ- बाल, वृद्ध, श्रान्त या ग्लान श्रमण के द्वारा भी शुद्धात्मतत्वके साधनभूत होनेसे मूलभूत संयमका छेद जैसे न हो उस प्रकार संयत को अपने योग्य प्रति कठोर ही प्राच. रण प्राचरना चाहिये, यह उत्सर्गमागं है । तथा बाल, वृद्ध, श्रान्त, ग्लान श्रमणके द्वारा शुद्धा. स्मतत्वके साधनभूत संयमका साधन होनेसे मूलभूत शरीरका छेद जैसे न हो उस प्रकार बाल. वृद्ध-श्रोत ग्लान के अपने योग्य मृदु आचरण ही आचरना चाहिये, यह अपवादमार्ग है । शुद्धा. स्मतत्वका साधन होनेसे मूलभूत संयमका छेद जैसे न हो उस प्रकार संयतके अपने योग्य अति कठोर पाचरण प्राचरते हुये बाल वृद्ध श्रान्त ग्लान थ्रमाके द्वारा शुद्धात्मतत्त्वके साथ. नभूत संयमका साधन होनेसे मूलभूत शरीरका भी छेद कैसे न हो उस प्रकार बाल-वृद्ध-श्रान्तग्लानके योग्य मृद्र आचरण भी प्राचरना चाहिये इस प्रकार अपवादसापेक्ष उत्सर्ग है । शुद्धा. स्मतत्व के साधन भून संयमका साधन होनेसे मूलभूत शरीरका छेद जैसे न हो उस प्रकारसे बाल-वृद्ध-धान्त-ग्लान के अपने योग्य मृद प्राधरण आचरते हुये बाल वृद्ध श्रान्त ग्लानके द्वारा शुद्धात्मतत्वका साधन होनेसे मूलभूत संयमका छेद जैसे न हो, उस प्रकारसे संयतको अपने योग्य अतिकर्कश प्राचरण भी प्राचरना चाहिये इस प्रकार उत्सर्ग सापेक्ष अपवाद है । अतः