________________
४३२ .
सहजानन्दशास्त्रसालायां
वसे तु सम्यगवलोकनाभावादनिवार्यहिंसायतनत्वेन न युक्तः । एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य । अरसापेक्ष एवाहारो युक्ताहारस्तस्यैवान्तःशुद्धिसुन्दरत्वात् । रसापेक्षस्तु अन्तरशुद्धया प्रसह्य हिंसायतनोक्रियमाणो न युक्तः । अन्तरशुद्धिसेवकत्वेन न च युक्तस्य । प्रमधुमास एवाहारो युक्ताहारः तस्यवाहिंसायतनत्वात् । समधुमासस्तु हिंसायतनत्वान्न युक्तः । एवंविधाहारसेबन व्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य । मधुमासमत्र हिंसायतनोपलक्षणं तेन समस्तहिंसायतनशून्य एवाहारों यक्ताहारः ।।२२।। डिपूण्णोदरं अप्रतिपुर्णादर: जहालद्धं यथालब्धः चरणं रसावेक्खं रसापेक्षः मधुमंसं मधुमासः-प्रथमा एकवचन । खलु दिवा णा न-अध्याय । भिक्खेण भिक्षया-तृतीया एक० । निरुक्ति- उद् अरणं उदरं उद् अर्यते " यः स उदरः (उद् + अप्) ! समास- अप्रतिपूर्ण उदर यस्य स अप्रतिपूर्णदिरः ॥२२६।।
इस गाथामें योग्य आहारका स्वरूप बताया गया है ।
तथ्यप्रकाश ---(१) एक बार हो ग्राहार करना योग्याहार है, क्योंकि एक बारके आहारसे हो श्रामण्यपर्यायके सहकारी कारण शरीरका टिकना बन जाता है । (२) अनेक बार पाहार शरीरके अनुरागसे ही किया जाता है सो उसमें भावहिंसा नियमित है, अत: अनेक बारका पाहार योग्याहार नहीं हो सकता । (३) एक बारमें भी अपूर्णोदर हो पाहार योग्याहार है, क्योंकि अपूर्णोदर आहार में साधुग्रोग्य योगविधानोंका विघात नहीं होता। (४) पूर्णोदर पाहार होनेपर योग (साधुकर्तव्य) में प्रमाद होता प्रतः पूर्णोदर आहार हिंसाका प्रायतन है सो वह योग्याहार नहीं। (५) एक बार व अपूगोदर पाहार भी यथालब्ध हो वह योग्याहार है, क्योंकि यथालब्ध प्राहारमें विशेष प्रियपने का अनुराग नहीं होता। (६) स्वेच्छालब्ध प्राहारका ग्रहण विशेषप्रियपनेके अनुरागसे हो भोगा जाता, अतः स्वेच्छालब्ध (अपनी पसंदगीका) आहार भावहिंसाका प्रायतन होनेसे अयोग्यः प्राहार है । (७) एक बार अपूर्णोदर यथालब्ध आहार भी भक्ष्याचरणसे ही प्राप्त किया गया योग्य प्राहार है, क्योंकि ऐषणासमितिसे प्राप्त किया गया प्राहार प्रारम्भदोषसे रहित है । (८) अभक्षाचरणसे प्राप्त पाहार प्रारंभयुक्त होनेसे हिंसाका पायतन है, अत: वह अयोग्य पाहार है । (६) एक बार अपूणोंदर यथालब्ध गोचरीसे प्राप्त प्राहार भी दिन में ही किया गया आहार योग्य आहार है, क्योंकि दिन में ही प्राहारको सही अवलोकन हो सकता है । (१०) दिनके अतिरिक्त अन्य समयमें किया गया आहार योग्य प्राहार नहीं, क्योंकि अन्य समय प्राहारका सही अवलोकन हो हो नहीं सकता । (११) दिनमें एक बार ऐषणासमितिसे प्राप्त यथालब्ध अपूर्णोदर पाहार भी अरसापेक्ष ही योग्य आहार है, क्योंकि अरसापेक्ष आहारमें ही अन्तरङ्ग विशुद्धि रह