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हजारहामाया
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प्रथ लोकालोकत्वविशेष निश्चिनोति----
पोग्गलजीवगिाबद्धो धम्माधम्मयिकायकालढो । वदि अागासे जो लोगों मा मब्बकाले दु ।।१२।। जितने नभ में रहते, धर्म अधर्म काल जोष व पुद्गल !
लोकाकाश हि उतनी, अवशिष्ट तथा अलोक मदा ।। १२८ ।। प्रदान जीवनिवरहे धर्मशालकायकानाचः । बनने आने में मकान ।। १२८॥
अस्ति हि द्रव्य लोकालोकत्वेन विशेविशिष्टय मन लामावात् । स्थानमा हि लोकस्य पढ्द्र यसमवात्मकत्वं, अलोवस्था पुन: कैवलाकामयम् । तत्र सर्वत्रन्ययागिनि घरममहत्याकाशे यत्र यावति जीवपुद्गलो गतिस्थितिमा गरिस्थिती अम्मन्दानम्सदगतिस्थितिनिधन भूतो च धमविभिन्यायायिनी, मद्रव्य वर्ननानिमितभुनाव कालो नित्यः
नामसंज्ञ ...पानी धम्मायमसनकायकाला अमान जल लव काम धानुसंशा बध बंधने, वन बनेन । प्रातिपदिक ... सगनलीयन बांधनकायवालामाकार
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तात्पर्य --- अाकाशके जितने क्षेत्र में जीद पुदगल में प्राधम व नामद्रका है, वह लोष है।
टोकार्य-वास्तव में द्रव्य लोकत्व और अलोकस्य के दो विशवदान है, क्योंकि अपने अपने लक्षणों का सद्भाव है। लोकका स्वलक्षण] पद्रव्य समवयात्मकत्व (लह द्रव्यों, को समुदायस्वरूपता) है, और प्रलोकका कंवल प्राकाशात्मवाय (मात्रामस्वरूपत्व) है । वहाँ सर्वद्रव्यों में व्याप्त होने वाले परम महान प्रकाश में, जहां जितने में गति-स्थिति धर्म वाले जीव तथा पुद्गल गतिस्थितिको प्रा होते हैं, (जहाँ जितने में उन्हें गतिधिनिमें निमितभूत धर्म तथा अधर्म व्याप्त होकर रहते हैं और (जहाँ जितने में) सर्व द्रव्योंके वर्तनाम निमित्त मृत काल सदा वतता है, वह उतना अाकाश सथा शेष समस्त द्रव्य उनका समुदाय जिसका स्वरूपतास स्वलक्षण है, वह लोक है: और जहां जितने प्रकाशमैं जीव तथा पुद्गल को गति स्थिति नहीं होती, धर्म तथा अधर्म नहीं रहते, और काल नहीं पाया जाना, उतना केवल आकाश जिसका स्वरूपतासे स्वलक्षणा है, वह प्रलोक है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें द्रव्य के जीवत्व व आजोबत्य विशेष बताये गये। थे । अब इस गाथा लोक और अलोक भेदका निश्न य किया गया है ।
तथ्यप्रकाश-१- छह द्रव्योंका समूह लोक है। २- केवल आकाशात्मक अलोक
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