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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका
विशिष्ट सन्चो लिङ्ग लिङ्गिप्रसिद्ध तल्लिङ्गत्वमुपढक ते । अथ ते द्रव्यस्य जीवोऽयमजीवोऽयमित्यादिविशेषमुत्पादयन्ति स्वयमपि तद्भावविशिष्टत्येनोपात्तविशेषत्वात् । यतो हि यस्य यस्य द्रव्यस्य यो यः स्वभावस्तस्य तस्य तेन तेन विशिष्टत्वात्तेषामस्ति विशेषः । अत एव च सुर्तानाममृतीनां च द्रव्याणां मूर्तत्वेनामूर्तत्वेन च तद्भावेन विशिष्टत्वादिमे मूर्ता गुणा हमे अमूर्ता इति तेषां विशेषो निश्वेयः ॥ १३० ॥
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तृतीया बहुत | दव्वं द्रव्य जीव जीवः अजीव अजीवः प्रथमा एक० । हृवदि भवति वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया। विष्णाद विज्ञान प्रथमा एक दन्त । ते तब्भावविसिद्धा तद्भाव विशिष्ठाः मुत्तामुत्ता मूर्तमर्ताः गुणा गुणा:-प्रथमा बहुवचन या ज्ञेयाः प्रथमा बहुवचन कुदन् क्रिया रूपे । निरुक्तिलिङ्गन लिङ्गः । समास-तस्य भावः तद्भावः तेन विशिष्टाः तद्भावविशिष्टाः (तश्चि अमृतरिक मूर्तीमूतः ॥१४३० ।।
व्योम मूर्तस्वसे विशिष्टता है अतः ये मूर्त गुण हैं ऐसा जाता जाता है । ( ७ ) प्रमृतं द्रव्यों में अमूर्तत्वसे विशिष्टता है, अतः मे अमूर्त गुण हैं ऐसा जाना जाता है । सिद्धान्त - ( १ ) मूर्ख पर्यायोंका आधार धार अमूर्तत्व गुण है ।
मूर्तत्व गुण है । ( २ ) प्रभूर्त पर्यायोंका
दृष्टि--१- मूर्तत्व शक्तिदर्शक अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय ( २३ ) | २- अमूर्तत्वशक्तिदर्शक अशुद्ध द्रव्याधिकनय ( २३ ब ) ।
प्रयोग - मूर्त द्रव्योंसे व प्रभूर्त परद्रव्योंसे उपयोग हटाकर निज अमूर्त चैतन्यस्वरूप में उपयोग लगाना ॥ १३०॥
मूर्त और अमूर्त गुणों का लक्षण तथा संबंध कहते हैं: - [इन्द्रियग्राह्याः ] इन्द्रि यग्राह्य [ पुद्गलद्रव्यात्मकाः ] पुद्गल द्रव्यात्मक [ श्रनेक विधाः ] अनेक प्रकारके [ गुणा मुला सुपवा] गुरण मूर्त जानना चाहिये और [ अमूर्तानां द्रव्याणां] अमूर्त द्रव्योंके [गुणाः] [: ज्ञातव्याः ] अमूर्त जानना चाहिये |
तात्पर्य ---- पुद्गल द्रव्यों के गुण मूर्त श्रीर शेष सभी द्रव्योंके गुण श्रमूर्त जानना चाहिये । टीकार्थ --- मूर्त गुणोंका लक्षण इन्द्रियग्राह्यत्व हैं; और अमूर्त गुणोंका लक्षण उससे दिपरीत है और वे मूर्त गुण पुद्गलद्रव्य के हैं, क्योंकि पुद्गल ही एक मूर्त है, और अमूर्त गुभ शेष द्रव्यों हैं, क्योंकि पुद्गल के अतिरिक्त शेष सभी द्रव्य अमूर्त हैं ।
प्रसंगविवरण- अनन्तरपूर्व गाथा में गुणविशेषसे द्रव्यविशेषका ज्ञापन कराया गया | सब इस गाथा में मूर्त अमूर्त गुरणोंका लक्षण तथा सम्बन्ध बताया गया है ।
तथ्यप्रकाश - ( १ ) जिनकी पर्याय इन्द्रियों द्वारा ग्रहण में आ सकने योग्य हों वे गुण