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प्रवचनसार--सप्तदशांगी टीका अप कालपदार्थोर्ध्वप्रञ्चयनिरन्वयत्वमुपहन्ति-- .
उत्पादो पद्धसो विजदि जदि जस्स एकसमयम्हि । समयस्स सो वि समयो सभावसमवहिदो हवदि ॥१४२॥
संभव विनाश होता, यदि कालका एक समय में तो वह।।
द्रव्य समयवृत्तिग ध्रुव, स्वभावसमवस्थ है शाश्वत ॥१४२॥ उत्पाद प्रध्वसो विद्यते यदि यस्यवसमये । समयस्य सोजपि समयः स्वभावसमवस्थितो भवति । १४२ ।।
न समयो हि समयपदार्थस्य वृत्त्यंशः तस्मिन् कस्याप्यवश्य मुत्पादप्रध्वंसी संभवतः, परमाणाव्यतिपातोत्पद्यमानत्वेन कारणापूर्वत्वात् । ती यदि वृत्त्यंशस्यैव कि योगपद्येन कि क्रमेण, बोगपद्येन चेत् नास्ति योगपर्व समभेकस्य विरुद्धधर्मयोरनवतारात् । क्रमेण चेत् नास्ति क्रमः, वस्यंगस्य सूक्ष्मत्वेन विभागाभावात् । ततो वृत्तिमान कोऽप्यवश्यमनुसतव्यः, स च समयपदार्थ
मामसंज-उप्पाद पद्धस दि ज एक समय समय त वि समअ सभावसमवद्विद । धातुसंज्ञ-विज्ज सताया हन सत्तायां । प्रातिपदिक उत्पाद प्रवरा यदि मत् एकसमय समय तत् अपि समय स्वभावसमरस्थित । मूलधातु - विद सत्तायां, भू सत्तायो । उभयपदविवरण-- उप्पादो उत्पादः पद्धसो प्रध्वंसः--प्रथमा है। (५) जीव चाहे अनस्थित हैं, परंतु असंख्यातप्रदेश होनेसे जीवके भी तिर्यकरचय है। का पदालके द्रव्यसे प्रनेकप्रदेश शक्ति शक्तियुक्त एक प्रदेशपना होनेसे, किन्तु पर्यायसे बहुप्रदेशी होने से तिर्यक प्रचय है । (७) कालद्रव्य के शक्तिरूपसे भी एकप्रदेशपना होनेसे व व्यक्तरूपसे भी एकप्रदेशपता होनेसे तिर्यप्रचय नहीं है। (८) ऊर्ध्वप्रचय समस्त द्रव्यों में होता ही है, क्योंकि समय समयमें पर्यायोंका होना निरन्तर न रहे तो द्रव्य की सत्ता ही नहीं। (६) जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाशद्रव्यके समय-समयपर होने वाले परिणमनोंके समूहरूप अर्ध्वप्रचय है । १०) कालद्रव्यके समय नामक परिणमनोंके समूहरूप ऊर्वप्रचय है ।
सिद्धान्त--(१) अनेकप्रदेशी द्रव्यके तिर्यक्प्रचय होता है।
दृधि---१- प्रदेशविस्तारदृष्टि (२१७)। 26 प्रयोग-तिर्यक्प्रचय व कर्वप्रचयसे अपने प्रात्मद्रव्यको पहिचानकर प्रचयके विकल्पों को छोड़कर प्रखण्ड शुद्ध चिन्मात्र अन्तस्तत्त्वको अनुभवना ।।१४१।।
अव कालपदार्थका ऊर्ध्वप्रचय निरन्वय है, इस शंकाको दूर करते हैं----[यस्य समयस्या जिस कालका [एक समये] एक समयमें [उत्पादः प्रध्वंशः] उत्पाद और विनाश [यदि] ददि [विद्यते] पाया जाता है, सिः अपि समयः] तो वह भी कालाणु [स्वभावसमवस्थितः] स्वभावमें अवस्थित अर्थात् ध्र व [भवति] होता है।