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सहजानन्दशास्त्रमालायां श्च भवति । एवंभूतश्च सर्वाभिलाजिज्ञासासंदेहासंभवेऽध्यपूर्वमनाकुलत्वलक्षण परमसौख्यं ध्यायति । अनाकुलत्वसंगतकाग्रसंचेतनमात्रेणावतिष्ठत इति यावत् । ईदृशमवस्थानं च सहजज्ञानानन्दस्वभावस्य सिद्धत्वस्य सिद्धिरेव ।।१६८।। निरुक्ति--आ समन्ताद बाधनं बाध: आबाधः बाध प्रतिपाते भ्वादि । समास- सर्वे च ते आवाचायनेति सर्वानाथाः तेभ्यः वियुक्तः सर्वाबाधवियुक्तः 11 १९८ ।। परम सहज अनन्त आनन्दको सलत अनुभवता रहता है । (७) यदि ध्यान शब्दसे ही परमात्माको रहस्य समझनेका प्राग्रह है तो कह लीजिये कि ये परम सहज प्रानन्दको ध्याते हैं अर्थात् परमात्मा सनाकुल्ल प्रात्माके संत्रेतनमात्रसे अवस्थित रहते हैं । (0) अनाकुल प्रात्मा के संचेतनमात्रसे अवस्थित रहना ही सहजज्ञानानन्दस्वभावका सिद्धपना है। -- . . . सिद्धान्त-(१) शुद्ध परिपूर्ण जानादि विकासी परमात्मा सहजानन्तानन्दरूप अपने को अनुभवते हैं।
दृष्टि--१-- शुद्धनिश्चयन य (४६) ।
प्रयोग- परम सहज प्रानन्द अनुभवते रहने के लिये इन्द्रिय व विकारसे रहित सहज ज्ञानमात्र अपनेको अनुभवना ३१६८।।
अब यह निश्चित करते हैं कि-'यही (पूर्वोक्त ही) शुद्ध प्रात्माकी उपलब्धि जिसका लक्षशा है, ऐसा मोक्षका मार्ग हैं' --- जिनाः जिनेन्द्राः श्रमणाः] अर्थात् सामान्य केवली, तीर्थ कर और मुनि [एवं] इ. प्रकार से [मार्ग समुत्थिताः] मार्गमें प्रारूढ़ होते हुये [सिद्धाः जाता सिद्ध हुये हैं [तेभ्यः] उनके लिये न] और [तस्मै निर्वाण मार्गाय] उस निर्वाणमार्गके लिये [नमः अस्तु] नमस्कार हो ।
तात्पर्य जैसा कि मार्ग बताया गया है उस मार्गमें प्रारूढ श्रमण ही सिद्ध होते हैं, उन सबको ब उस मोक्षमार्गको नमस्कार हो।
टीकार्थ----सभी सामान्य चरमशरीरी तीर्थकर और अचरमशरीरो मुमुक्षु इसी यथोक्त शुद्धात्मतत्व प्रवृत्तिरूप विधिसे प्रवर्तमान मोक्षके मार्गको प्राप्त करके सिद्ध हुये; किसी दूसरी विधिसे नहीं। इससे निश्चित होता है कि केवल यह एक ही मोक्षका मार्ग है, दूसरा नहीं। अधिक विस्तारसे पूरा पड़े । उस सुद्धात्मतत्व में प्रवर्ते हुये सिद्धोंको तथ। उस शुद्धात्मतत्व. प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गको, भाव्यभावकविभागरहितपनेसे नोग्रागमभावनमस्कार हो । मोक्षमार्ग निश्चित कर लिया है, अब कर्तव्य किया जा रहा है।
प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व : गाथामें उससे पूर्वकी गाथामें किये गये इस प्रश्नका