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सहजानन्दशास्त्रमालायां अस्य जनस्यात्मा न युवाभ्या जवितो भवतीति निश्चयेन युवा जानीतं तत इममात्मानं युवा विमुञ्चतं, अयमात्मा प्रद्योद्भिन्नज्ञानज्योतिः प्रात्मानमेवात्मनोऽनादिजनकमुपसर्पति । ग्रहो इदंजन शरीररमण्या प्रात्मन् , अस्य जनस्यात्मोनं न त्वं रमयसीलि निश्चयेन त्वं जानीहि तत इममात्मानं विमुञ्च, अयमात्मा प्रद्योद्भिन्नज्ञानज्योतिः स्वानुभूतिमेवात्मनोऽनादिरमणीमुप. सपंति । अहो इदंजनशरीरपुत्रस्यात्मन्, अस्य जनस्थात्मनो न त्वं जन्यो भवसोति निश्चयेन त्वं जानीहि तत इममात्मानं विमुञ्च, अयमात्मा प्रद्योद्भिन्नज्ञानज्योतिः प्रात्मानमेवात्मनोऽनादिजन्यमुपसर्पति । एवं मुरुकल वपुत्रेभ्य प्रात्मानं विमोचयति । तथा अहोकालविनयोपधानबहुमानानिवार्थव्यञ्जनतदुभयसंपन्नत्व लक्षणज्ञानाचार, न शुद्धस्यात्मनस्त्वमसीति निश्चयेन जानामि तथापि त्वां तावदासीदामि यावत्त्वत्प्रसादात् शुद्धमात्मानमुपलभे । अहो निःशतित्वनिःकाक्षितत्वनिविचिकित्सत्वनिर्मूढदृष्टित्वोपबृहण स्थितिकरणवात्सल्यप्रभावनालक्ष णदर्शनाधातु-आ षद्लु गतौ । उभयपदविवरण- बंधुवग्ग बन्धुवर्ग-द्वि० एक० । विमोचिदो विमोचितः--प्रथमा एक० । गुरुकलतपुरोहिं गुरुकलत्रपुरैः-तृतीया बहु० । आसिज्ज आसार-सम्बन्धार्थप्रक्रिया कृदन्त अव्यय । कर लं। अहो मोक्षमार्गमें प्रवृत्तिके कारणभूत, पंचमहाव्रतसहित काय-वचन-मनगुप्ति . और ईर्या-भाषा-ऐषण अादान निक्षेपण-प्रतिष्ठापन समिति लक्षण वाले चारित्राचार ! मैं यह निश्चयसे जानता हूं कि तू शुद्धात्माका नहीं है, तथापि तुझे तब तक अंगोकार · करता हूँ जब तक कि तेरे प्रसादसे शुद्धात्माको उपलब्ध कर लूं। ग्रहो अनशन, प्रथमोदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और ध्युत्सर्ग लक्षण वाले तपाचार ! मैं यह निश्चयसे जानता हूं: कि तू शुद्धात्माका नहीं है तथापि तुझे तब तक अंगीकार करता हूं जब तक तेरे प्रसादसे शुद्धात्माको उपलब्ध कर ! अहो समस्त इतर अर्थात् वीर्याचारके अतिरिक्त अन्य प्राचारमें प्रवृत्ति कराने वालो स्वशक्तिके अगोपन लक्षण वाले वीर्याचार ! मैं यह निश्चयसे जानता है. कि त शुद्धात्माका नहीं है, तथापि तुझे तब तक अंगीकार करता हूं जब तक कि तेरे प्रसादसे शुद्धात्माको उपलब्ध कर लू । इस प्रकार श्रामण्यार्थी पुरुष ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचारको अंगीकार करता है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि यदि दुःखोंसे छूटनेको अभि.. लाषा है तो श्राम्यण्यको अङ्गीकार करो । अब इस गाथामें बताया गया है कि श्रमण होनेका : इच्छुक पुरुष पहिले क्या क्या करता है ?
तथ्यप्रकाश-(१) जो श्रमण होना चाहता है वह बन्धुवर्गको कहता है कि हे इस