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सहजानन्दशास्त्रमालाया स्वात् । तदिह षड्द्रव्यात्मके लोके न मम किंचिदप्यात्मनोऽन्यदस्तीति निश्चितमतिः परद्रव्यः । स्वस्वामिसंबन्धनिबंधनानामिन्द्रियनोइन्द्रियाणां जयेन जितेन्द्रियश्च सन् धृतयथानिष्पन्नात्मः । द्रव्य शुद्धरूपत्वेन यथाजातरूपधरो भवति ।।२०४॥ मम-पष्ठी एक । परे-प्र० बहुत । अस्थि अस्ति--वल अन्य० एवः क्रिया। किंचि किचित्--अव्यय अन्तः x० एक० । निरुक्ति....पारयतीति पर: पु, पुर। समास--जितानि इन्द्रियाणि येन स: जितेन्द्रियः, यथाजात रूपं धरति इति यथाजातरूपधरः ।।२०४|
सम्बन्ध नहीं है । (४) जिसने अपनी परविविक्तताका निश्चय किया है वह परसम्बन्धनिबन्धनक इन्द्रिय ब मनको जीत लेनेके कारण जितेन्द्रिय होता है। (५) जितेन्द्रिय होता हुमा यह श्रामण्यार्थी यथाजातरूपको धारण कर लेता है, क्योंकि ययाजातला अर्थात् पायपरिग्रहः रहित दिगम्बरी मुद्रा आत्मद्रव्यके अविरुद्ध शुद्ध रूप है। (६) निश्च यसे यथाजातरूप स्वसहजात्मरूप है।
सिद्धान्त- (१) श्रामण्यार्थी आन्तरिक यथाजातशुद्धामरूपको धारण करता है। दृष्टि--- १- वर्तमान नैगमनय (३) ।
प्रयोग- परविविक्त स्वचेतना मात्र प्रात्मतत्त्वकी सिद्धि के लिये निग्रंन्य गात्रमात्र जैनी दीक्षा धारण करके ज्ञानघन अन्तस्तत्वको प्राराधना करना ॥२०४॥
अब अनादिसंसारसे अनभ्यस्त होनेके कारणा अत्यन्त अप्रसिद्ध है ऐसे इस यथोजात. रूपधरत्वके बहिरंग और अन्तरंग दो लिंगोंका--जो कि अभिनत्र अभ्यास में कुशलतासे उप.। लब्ध होने वाली सिद्धिके सूचक हैं उनका उपदेश करते हैं--[यथाजातरूपजातम्] जन्म समय के रूप जैसा रूपवाला, उत्पारितकेशश्मश्रुक] सिर और दाढ़ी-मूछ के बालोंका लोच किया हुमा [शुद्ध] सर्व लेपसे रहित [हिंसादितः रहितम्] हिसादिसे रहित और [अप्रतिकर्म] शारीरिक शृगारसे रहित [लिगं भवति श्रामण्यका बहिरंग चिह्न है । [मूछारम्भवियु क्तम् ] ममत्व और प्रारम्भमे रहित [उपयोगयोगशुद्धिभ्यां युक्त] उपयोग और योगको शादि से युक्त तथा [न परापेक्षं] परकी अपेक्षासे रहित [जैन] जिनेन्द्रदेवकथित [लिंगम्] श्रामण्य का अन्तरंग लिंग [अपुनर्भवकाररणम् ] मोक्षका कारण है ।
तात्पर्य-निरपेक्ष निर्लेप निर्ग्रन्थ दिगम्बर लिङ्ग मोक्षका मार्ग है।
टोकार्थ-वस्तुतः अपने द्वारा यथोक्तक्रमसे यथाजातरूपधर हुए प्रात्माके पयथाजातरूपधरत्व के कारणभूत मोइरागद्वेषादिभावोंका अभाव होता ही है; और उनके प्रभावके कारण उनके सद्भाव में होने वाले वस्त्राभूषणधारणका, सिर और दाढ़ी मूछोंके वालोंके रक्षणका