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सहजानन्दशास्त्रमालायां घाभावद्यथाजातरूपत्वमुत्पाटितकेशश्मश्रुत्वं शुद्धत्वं हिंसादिरहितत्वमप्रतिकर्मत्वं च भवत्येव, तदेतदबहिरंग लिंगम् । तथात्मनो यथाजातरूपधरत्वापसारितायथाजातरूपधरत्व प्रत्ययमोहराग. द्वेषादिभावानामभावादेव तद्भावभाविनोममत्वकर्मप्रक्रमपरिणामस्य शुभाशुभोपरत्तोपयोगतत्पूर्वदिक- यथाजातरूपजात उत्पादित केशश्मश्रु क शुद्ध रहित हिंसादित: अप्रतिकर्म लिङ्ग मुछारम्भवियुक्तः युक्त उपयोगयोगबुद्धि लिङ्ग व परापेक्ष अपुनर्भवकारण जन । मूलधातु-भू सत्तायां । उभयपदविवरण-- जधजादख्वजादं यथाजात रूपजातं उप्पाटि दकेसमंसुगं उत्पाटित केशश्मश्र के सुद्धं शुद्धं रहिदं रहितं अप्पडिकम्म अप्रतिकर्म लिग लिङ्ग-प्रथमा एकवचन । हिंसादोदो हिंसादित:--अव्यय पंचम्यथं । हवदि भवतिवर्तमान अन्य एकवचन क्रिया । मुच्छारंभविजुत्तं मुर्छारम्भवियुक्तं जुत्तं युक्त लिग लिङ्ग पराबेक्त्र परापेक्ष अपुणभावकारणं अपुनर्भवकारणं जेण्हें जैन-प्रथमा एकवचन | उवजोगजोगसुद्धीहि-तृतीया जातरूपधारो हो जाता है अर्थात् निर्ग्रन्थदीक्षा धारण कर लेता है । अब इस गाथामें यथाजात. रूपके बहिरङ्ग व अन्तरङ्ग चिह्नोंको बताया गया है ।
तथ्यप्रकाश--(१) यथाजासरूप (तत्काल उत्पन्न नग्न शिशुवत् सहजात्मरूप) धारण । करने वाले पुरुषके अयथाजातरूपधरता (सपरिग्रहता) के कारण होते रहने वाले मोह राम द्वेष आदि विकारोंका प्रभाव हो जाता है । (२) मोहरागद्वेषादिभावोंका अभाव हो जानेसे अब वस्त्राभूषणोंका धारण कैसे बने, क्योंकि वस्त्राभूषणधार तो मोह रागद्वेष भावोंके होनेपर होता है, अतः नग्नत्व हो जाता है । (३) मोहरागद्वेषादि भावोंका अभाव हो जानेसे अब शिर मूछ दाढ़ीके बालोंको कैसे सम्भाला जाय, अतः केश मंछ दाढ़ीके बालोंको उखाड़ दिया जाता है । (४) मोहरागद्वेषादिभावोंका प्रभाव हो जानेसे सकिञ्चनता अर्थात् किसी चोजका रखना कैसे बनें, अतः शुद्धता, निर्लेपता, निष्परिग्रहता प्रकट होती है। (५) मोहरागद्वेषादि का प्रभाव हो जानेसे सावद्य प्रारम्भका योग कैसे बने, अतः हिंसादिरहितपना सिद्ध होता। है । (६) मोहरागद्वेषादिका अभाव हो जानेसे प्रश्न शरीरके संस्कारका करना कैसे बने, अतः शारीरिक संस्कार व शृङ्गारका प्रभाव हो जाता है। {७) नग्नत्य, केशलुञ्च, निष्परि महत्व . हिसादिरहित तथा प्रति कर्मत्व (शारीरिक संस्कार ङ्गाररहितपना) ये यथाजातरूप मुद्रा के बहिरङ्ग लिङ्ग (चिह्न) हैं । (८) सहजात्मरूप धारण करनेसे मोहरागद्वेषादि विकारभाव का प्रभाव हो जाता है । () मोहरागद्वेषादिका प्रभाव हो जानेसे ममत्व परिणाम कैसे बने प्रतः मूच्र्छारहितपना प्रकट होता है । (१०) मोहरागद्वेषादिका अभाव होनेसे किसी लौकिक कार्यमें कैसे लगा जाय, अतः प्रारम्भरहितपना प्रकट होता है। (११) मोहरागद्वेषादिका अभाव होनेसे अब उपयोग शुभ व अशुभ भावोंसे कैसे उपरक्त होये, अतः निर्विकार स्वसंवे दन होने से उपयोगशुद्धि हो जाती है अर्थात् शुद्धोपयोग होता है । (१२) विकाराभावके कारण
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