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सहजानंदशास्त्रमालायां अथोपसंवा साम्यमिति पूर्वप्रतिज्ञा निर्वहन मोक्षमार्गभूतां स्वयमपि शुद्धात्मप्रवृत्तिमासूति
तम्हा तह जाणित्ता अप्पाणं जाणगं सभावेण । परिवजामि ममत्तिं उवहिदो गिम्ममत्तम्मि ॥२०॥ इससे यथार्थ अभिगत, कर प्रात्माको स्वभावसे जायक ।
तजता ममत्वको है, निर्ममतामें बर्तता है ।। २०० ।। तस्मात्तथा ज्ञात्वात्मानं शायक स्वभावेन । परिवर्जयामि ममतामुपस्थितो निर्ममत्वे ।। २०७।।
महमेष मोक्षाधिकारी ज्ञायकस्वभावात्मतस्वपरिज्ञानपुरस्सरममत्व निर्ममत्वहानोपादानविधानेन कृत्यान्तरस्याभावात्सर्वारम्भेगा शुद्धात्मनि प्रवर्ते । तथाहि-प्रहं हि तावत् ज्ञायक एव स्वभावेन, केवल ज्ञायकस्य च सतो मम विश्वेनापि सहजज्ञेयझायकलक्षण एव संबन्धः न
नामसंज-ततह अस्प जाणग सभाव ममत्ति उवाद्विद णिम्ममत्त । धातुसंज्ञ- जाण अववोधने, परि वज्ज वर्जने उबट्ठा गतिनिवृत्तो । प्रातिपदिक--तत् तथा आत्मन् ज्ञायकस्वभाव ममता उपस्थित निर्मम(७) अनन्तज्ञानादिसिद्धगुणोंका स्मरण होना सिद्धोंके प्रति भावनमस्कार है। (८) निविकार स्वसंवेदन होना निश्चयरत्नत्रयरूप मोक्षमार्गके प्रति भावनमस्कार है । (8) निज सहज पर"मात्मतत्वको अनुभूति होना ही मोक्षमार्ग है यह तो निश्चित कर लिया, अब तो उसका कर्तव्य किया जाता है।
सिद्धान्त-(१) प्रात्माका परिपूर्ण स्वतंत्र स्वाभाविक विलास अनुभवनेका .. उपाय सहजात्मस्वभावको अभेदोपासना है।
दृष्टि------ सामान्यन य, नितिनय, स्वभावनय, अनीश्वरनय, शुद्ध भावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याधिकनय (१६७, १७७, १७६, १८६, २४ब)।
प्रयोग-सहजपरमानन्दसम्पन्नता रूप सिद्धिके लिये सहजज्ञानानन्दमय सहजपरमास्मतत्वको प्रभेद प्राराधना करना ।।१६६।।
___मब 'साम्यको प्राप्त करता हूं ऐसी पूर्वप्रतिज्ञाका निर्वाह करते हुये प्राचार्यदेव स्वयं मोक्षमार्गभूत शुद्धात्मप्रवृत्ति प्रासूत्रित करते है-[तस्मात्] शुद्धात्मामें प्रवृत्तिके द्वारा ही मोक्ष होने के कारण [तथा] उसी प्रकार [प्रात्मानं] प्रात्माको [स्वभावेन ज्ञायकं] स्वभावसे ज्ञायक [शात्या] जानकर [निर्ममत्वे उपस्थितः] निर्ममत्व में स्थित रहता हुमा मैं [ममता "परिवर्जयामि ममताका परित्याग करता हूं।
तात्पर्य-स्वभावसे ज्ञायकमात्र अपनेको जानकर मैं निर्ममत्व होता हूं। टोकार्थ----मैं यह मोक्षाधिकारी, ज्ञायकस्वभावी प्रात्मतत्त्वके परिज्ञानपूर्वक ममत्वका
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