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सहजानन्दशास्त्रमालायां
उपपन्नश्चैवंविध: पर्याय:, अनेक द्रव्यसंयोगात्मत्वेन केवलजीयव्यतिरेकमात्रस्यकद्रव्यपर्यायस्याः । स्खलितस्यान्तरवासनात् ॥ १५२ ॥ अर्थः पज्जाओ पर्यायः सो स;-प्रथमा एकवचन । संठाणादिपमेदेहि संस्थानादिप्रभेदै -तृतीया बहुवचत निरुक्ति-अयंत निश्चीयते य: स अर्थः । समास--अस्तित्वेन निश्चितः अ० लस्य, संस्थानादीनां प्रभेदा संस्थानादिप्रभेदाः तः संस्थानादिप्रभेदैः ।।१५२।। विभावद्रव्यव्यञ्जन पर्याय हो जाता है । ४--पुद्गल पुद्गलोंके बन्धनसे समान जातीय विभाव। द्रव्यव्यञ्जन पर्याय होता है । ५- जीव पुद्गलोंके बन्धनसे असमानजातीय विभावद्रव्यन्यजन पर्याय होता है । ६- अनेक द्रव्योंका संयोग होनेपर जीव कहीं पुद्गलोंके साथ एकरूप पर्याय नहीं करता । ७--- विभावद्रव्यव्यञ्जन पर्यायके समय भी एक द्रध्यकी दृष्टि से देखनेपर पुद्गल पर्यायसे भिन्न जीवकी अपनी एक द्रव्यपर्याय सदैव प्रवर्तमान रहती है । -पुद्गलकर्मोपाधिसे रहित होनेपर जीवका स्वभाव द्राव्यञ्जन पर्याय प्रकट होता है । --- जीवका स्वरूपास्तित्व। चिदानन्दैकरूप है।
सिद्धान्त..... (१) जीव व कर्म नोकर्मरूप पुद्गलोंके बन्धन से नर नारकादि पर्याय प्रकट होता है ।
दृष्टि .... १.- असमानजातीय विभावद्रव्यव्यञ्जनपर्यायदृष्टि (२१६) ।
प्रयोग -... क्लेशमूल व्यवहारजीवपनासे छुटकारा पानेके लिये सहजचिदानन्दमय सहज स्वरूप में प्रात्मत्वका मनन करना ।।१५।।
अब पर्यायके भेदोंको दिखाते हैं - [नामकर्मणः उदयादिभिः] नामकर्मके उदयादिक के कारण [नरनारकतिर्यकसुराः] मनुष्य, नारक, तियंत्र और देव [जीवानां पर्यायाः] जीवों की पर्यायें हैं, [संस्थानादिभिः] जो कि संस्थानादिके द्वारा [अन्यथा जाताः] अन्य अन्य प्रकारको ही हुई हैं।
तात्पर्य - नारक, तिथंच, मनुष्य, देव ये असमान जातीय द्रव्यव्यञ्जन पर्याय हैं।
टीकार्थ--- नारक, तियंच, मनुष्य और देव जीवोंकी पर्यायें हैं । वे नामकर्मरूप पुर । गलके विपाकके कारण अनेक द्रव्यसंयोगात्मक होने से तुषको अग्नि और अंगार इत्यादि अग्नि को पर्याय चूरा और डली इत्यादि प्राकारोंसे अन्य अन्य प्रकारको होनेकी तरह संस्थानादिक द्वारा अन्यान्य प्रकारको ही हुई हैं।
प्रसङ्गविवरण-.-.-अनन्तरपूर्व गाथामें व्यवहारजीवत्व के हेतुभूत पर्यायोंको बताया गया था। अब इस गाथामें उन पर्यायोंके प्रकार बताये गये हैं ।
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