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BASSETTE
प्रवचनसार....सप्तदशाङ्गी टीका
३०७ द्रियाणामेकपिष्टपर्याय हा परिणामः । अनेकपरमारगुद्रव्यत्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वातामनेकत्वेअपि कथंचिदेकत्वेनाव भासनात् ।।१६१॥ य च त्ति इति हि-अव्यय । निर्दिष्टा:-प्रथमा बहुबचन कृदन्त क्रिया : परमाणुयाम परमाणुद्रव्याणपष्टी बहु० । निरुक्ति ---लिण्डन पिण्ड: पिडि संघात स्वादि। समास-गुगलद्रव्यं आत्मकं येषां ते पुद् लद्रव्यात्मकाः ।! १६१ ।।
प्रसंगविवरण- अनन्तरपूर्व गाथा में शरीरादिके प्रति अत्यन्त माध्यस्थ भाव प्रकट किया गया था । अब इस गाथामें शरीरादिका परापना सुदृढ़ निश्चित किया गया है ।
म तथ्यप्रकाशा--(१) शरीर, वचन और मन नीनों ही पुद्गलद्रव्याप होनेसे परद्रव्य है। (२) यद्यघि ध्यदहारसे जीवके साथ शरीर वचन मनका एकत्व है, किन्तु निश्चयतः परम
तत्यप्रकाशवृत्तिलक्षण वाले जोबसे शरीरादि अत्यन्त भिन्न हैं। (३) शरीर, वचन, मन पुद्गलद्रव्य के स्वरूपास्तित्वसे निश्चित हैं, अतः पुद्गल द्रव्यरूप हैं। (४) शरीर वचन मनको
ऐसो पिण्डरूप रचना अनेक परमाणुद्रव्यों के एक पिण्डरूप पर्यायसे बनी है । (५) शरीरादि anकी इस पिण्डरूप एक स्कन्धकी दशामें भी अपने अपने स्वरूपास्तित्वसे अनेक परमाणुबोका अपना-अपना सत्त्व है । (६) ये शरीरादि मुझसे अत्यन्त पृथक् हैं ।।
सिद्धान्त --- (१) प्रात्मा अपने चैतन्यमय स्वरूपास्तित्व से ही है । (२) प्रात्मा अचेतनद्रव्यके स्वरूपसे नहीं है । (३) प्रात्माका स्वरूप प्रखण्टु चैतन्यप्रकाश है।
* दृष्टि--१- स्व द्रव्यादिग्राहक द्रव्यायिकनय (२८) । २- परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यायिक नयः (२६) 1 :- परमभावग्राहक द्रव्याथिकानय (३०) ।
प्रयोग-समस्त परद्रव्योंसे उपयोग हटाकर अपने स्वरूपमें ही उपयुक्त होना ।।१६१।।
अब प्रात्माके परद्रव्यपनेका प्रभाव और परद्रव्यके कपिनको अभाव सिद्ध करते --अहं पुदगलमयः न] मैं पुद्गलमय नहीं हूं, और ते पुद्गला:] वे पुद्गल [मया मेरे मारा [विण्डं न कृताः] पिण्डरूप नहीं किये गये हैं। तस्मात् हि] इस कारण निश्चयतः प्रहं न वेहः] मैं देह नहीं हूं, [वा] तथा [तस्य देहस्य कर्ता] उस देहका की नहीं हैं।
तात्पर्य- मैं देह नहीं हूँ और न देहका कता हूं, क्योंकि देह पुद्गलमय है ।।
टोकार्थ-..-जिसके भीतर वाणी और मनका समावेश हो जाता है ऐला जो यह प्रक. समें निर्धारित पुद्गलात्मक शरीर नामक परद्रव्य है. वह मैं नहीं हूं; क्योंकि मुझ अपुद्गला. मकका पुद्गलात्मक शरीररूप होनेमें विरोध है । और इसी प्रकार उस शरीरके कारण द्वारा, कर्ता द्वारा, कर्ताके प्रयोजक द्वारा या कर्ता के अनुमोदक द्वारा शरीरका कर्ता में नहीं हूं, क्योंकि
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