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सहजानंदशास्त्रमालायां चिरसंचितेन पुराणेन च वैराग्यपरिगतो न बध्यते । ततोऽवधार्यते द्रध्यबन्धस्य साधकतमत्वाद्रागपरिणाम एव निश्चयेन बन्धः ।।१७६।। पुरुष एकवचन क्रिया । कम्मं कर्म-द्वितीया एक० । मुच्चदि मुच्यते-वर्त० अन्य० एक० भावकर्मप्रक्रिया । कम्मेहि कर्मभिः-तृतीया बहु० । जीवाणं जीवानां-षष्ठी बहु० ॥ जाण जानीहि-आज्ञार्थे मध्यम पुरुष एकवचन त्रिया । णिच्छवदो निश्चयत:-पंचम्यर्थे अव्यय । निरुक्ति-से असनं समासः अस' गति दीप्त्यादा ने भ्वादि । समास-- रागेन रहितः राग रहित: रागरहितश्चासौ आत्मा चेति रागरहितात्मा, बन्यस्य समास: बन्धसमासः ॥ १७६ ।।
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का साधकतम होनेसे सगपरिणाम ही निश्चयसे बंध है।
प्रसंग विवरण-----अनन्तरपूर्व गाथामें द्रव्य बन्धका निमित्त भावबन्धको बताया गया। था। अब इस गाथामें बन्ध व मोक्षके पात्र जीवका विश्लेषण किया गया है ।
तथ्यप्रकाश----(१) रागपरिणत ही प्रात्मा नवीन द्रव्यकर्मसे बंधता है । (२) वैराग्यपरिगत आत्मा नवीन द्रव्यकर्मसे नहीं बँधता । (३) वैराग्यपरिणत ही प्रात्मा बद्ध कोसे छूटता है । (४) रागपरिणत अात्मा बद्ध कर्मोंसे नहीं छूटता। (५) द्रष्यबन्धका साधकतम रागपरिणाम हो हैं। (६) रागपरिणामके होनेको भावबन्ध कहते हैं। (७) भावबन्ध ही। निश्चयसे बन्ध है, क्योंकि भावबन्ध ही द्रव्यबंधका हेतु है । (८) रागपरिणाम कहने से यहाँ सभी विकारोंका ग्रहण करना।
सिद्धान्त--(१) रागरहित शुद्ध भाव होनेपर कर्मबन्ध दूर हो जाता है । (२) राम गादिपरिणाम ही निश्चयसे बन्ध है।
दृष्टि-१-शुद्धभावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय (२४ब) । २--अशुद्धनिश्चयनय (४७)।
प्रयोग-कर्म से छुटकारा पानेके लिये अविकार ज्ञानमात्र अन्तस्तत्त्वके प्राश्रयसे वरा ग्यपरिणत होना ॥१७६।।
अब परिणामका द्रव्य बंधके साधकतम रागसे विशिष्टत्व भेदसहित प्रगट करते हैं[परिणामात् बंधः] परिणामसे बंध होता है, [परिणामः रागद्वेषमोहयुतः] वह परिणाम राग-द्वेष मोहसे युक्त है। मोहप्रषौ अशुभौ] उनमें मोह और द्वेष तो अशुभ है, किन्तु [रागः] राग [शुभा वा अशुभः] शुभ अथवा अशुभ भिवति] होता है।
तात्पर्य-राग द्वेष मोह भावके निमित्तसे कर्म बंधता है । उनमें मोह द्वेष तो अशुभ ही होते, राग कोई शुभ होता, कोई अशुभ होता।
टोकार्थ-द्रव्यबंध तो विशिष्ट परिणामसे होता है । परिणामको विशिष्टता राग-द्वेषमोहमयताके कारण है । वह शुभत्व और अशुभत्वके कारण द्वैतका अनुसरण करता है अर्थात्