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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका
विचनाप्यन्यदसद्धेतमत्त्वेनाद्यन्तवत्त्वात्परत: सिद्धत्वाच्च ध्रुवमस्ति । ध्रुव उपयोगात्मा शुद्ध प्रात्मैव । अतोऽन व शरीरादिकमुपलभ्यमानमपि नोपलभे शुन्द्वात्मानमुपलभे ध्रुवम् ।।१६।। सान्ति-वर्तमान अन्य पुरुष बहुवचन किया। वा अध-अध्यय । मिरुक्ति सीदति इति शत्रुः पद्ल विशरणगत्यवसीदनेषु, मद्यति स्नि ह्यति यत्तमित्रं मिदास्नेहन स्वादि जिमिदा स्नेहने दियादि । समास- सुख च दुःखं च सुखदुःम्ये ३१६३॥ प्रात्मातिरिक्त अन्य कुछ भी पदार्थ प्राप्त करनेके योग्य नहीं है।
तथ्यप्रकाश-----(१) परद्रब्यसे मैं अत्यन्त भिन्न हूं अत: कोई भी परद्रव्य मुझ पात्मा का ध्र व नहीं है, क्योंकि समस्त परद्रव्य मुझमें असत् हैं । (२) पर पौद्गलिक कर्मविपाकका निमित्त पाकर उत्पन्न हुए जीदगत विकारसे मैं अत्यंत भिन्न हूं, अत: नैमित्तिक परभाव भी मुझ प्रात्माका ध्रुव नहीं है, क्योंकि वे सहेतुक होनेसे आद्यन्तवान् हैं न परत्तः सिद्ध हैं। (३) उपयोगात्मक शुद्ध (केवल) प्रात्मा ही मेरा ध्रव है । (४) अध्र व शरीरादिक भले ही जब तक बद्ध हैं रहो, मैं तो उपलभ्यमान उस शरीरादिकको भी नहीं प्राप्त कर शुद्ध ध्र व प्रात्माको ही प्राप्त करता हूं। (५) देह देहरहित मुभ, सहजपरमात्मतत्त्व से भिन्न है। (६) इन्द्रिय भोगोपभोगके साधन भूत धन मुझसे अत्यन्त भिन्न है । (७) अविकार स्वात्मासे प्राविभूत सहजानन्दामृषसे विपरीत सुख दुःखरूप विकारभाव मुझ सहजपरमात्मतस्वसे भिन्न हैं । (८) शत्रु मित्रादि भावरहित चिन्मात्र सहज स्वतत्त्वसे विलक्षण शत्रु मित्रादिजन मुझसे अत्यन्त भिन्न हैं।
सिद्धान्त---१- प्रात्मा समस्त परद्रव्य व परभावोंसे भिन्न केवल स्वभावमात्र है। दृष्टि---१- परद्रव्यादिग्राहक शुद्ध द्रव्याथिकनय (२६) ।
प्रयोग.--- समस्त परपदार्थ व परभावोंको अध्रुव जानकर ध्र व चित्स्वभावमात्र स्वास्मामें प्रात्मत्वकी भावना करना ॥१६३!!
___इस प्रकार शुद्धात्माकी उपलब्धिसे क्या होता है अब यह निरूपण करते हैं- [य] जो [सागार अनागारः] श्रावक व मुनि [एवं ज्ञात्वा] ऐसा जानकर [विशुद्धात्मा] विशुद्धा. त्मा होता हुआ [परमात्मानं] परम प्रात्माको [ध्यायति] ध्याता है, [सः] वह [मोहदुथि] मोहदुग्रंथिको [क्षपयति ] नष्ट करता है।
टीकार्थ-इस यथोक्त विधिके द्वारा शुद्धात्माको ध्र व जानने वाले आत्माके उसीमें प्रवृत्ति होनेसे शुद्धात्मत्व होता है। इस कारण अनन्तशक्ति बाले चिन्मात्र परम आत्माका एकानसंचेतनलक्षण ध्यान होता है; और इस कारण सविकल्प उपयोग वालेकी या निर्विकल्प
Imuhimmimitali