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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका
३६५ अथ मोहग्रन्थिभेदारिक स्यादिति निरूपयति
जो णिहदमोहगंठी रागपदोसे खवीय सामगो । होजौंसमसुहदुक्खो सो सोक्खं अस्वयं लहदि ॥१६॥ जो निहतमोहनन्थी, क्षत करके रागद्वष मुनिपनमें ।
हो सुख दुखमें सम वह, अविनाशी सौख्य पाता है ॥१५॥ यो निहतमोहग्रन्थो रामप्रद्वेषौ पयित्वा श्रामण्ये 1 भत्रे समसुखदुःख म सौख्यमक्षय लभते ।। १६५॥
मोहप्रन्थिक्षपणाद्धि तन्मूलरागद्वेषक्षपरणं ततः समभुखदुःखस्य परममाध्यस्थलक्षणे श्रा.
नामसंज्ञ- ज णिहदमोहगंठि रागापदोस सामण्ण समसुहवाल त सोक्न अक्खय । धातुसंज्ञ---खव क्षयकरो, हो सत्तायां, लह लामे । प्रातिपदिक--यत्त निहतमोहदुर्गन्धि रागद्वेप थामण्य समसुखदुःख तत् सौख्य अक्षय । मूलधातु--क्षि क्षये, भू सत्तायां, इलभ प्राप्तौ। उभयपदविवरण---जो यः णिहदमोहगंठी समसुहदुक्खो समसुखदुःख सो स:-प्रथमा एकवचन । राग दोसे-द्वि० बहु० । शगप्रद्वेषौ-द्वि० उपयुक्त प्रात्माके प्रासंसारबद्ध भोहको खोटो गांठ छूट जाती है । (४) शुद्धात्मोपलब्धिका यह महान् फल त्वरित प्राप्त होता है कि मोहको मठका भेदन हो जाता है अर्थात् प्रात्मा मोहविकाररहित हो जाता है । (५) सहज परमात्मस्वसंवेदन जान ही स्वात्मोपलभ है । (६) शुद्धात्मरुचिका प्रतिबन्धक दर्शनमोह ही खोटी गांठ है जिसके कारण भव भवमें जन्म मरण का व जीवनमें अनेक कष्टोंको भोगले रहना पड़ता है।
सिद्धान्त- (१) प्रात्माका सर्वस्व ध्र व शुद्ध सहज परमात्मतत्त्व है। दृष्टि-१- उपाधिनिरपेक्ष शुद्ध द्रव्याथि कनय (२१) 1
प्रयोग-समस्त संसारसंकटोंके मूल मोह दुर्ग्रन्थिसे छुटकारा पानेके लिये सहजसिद्ध अविकार ज्ञायकस्वभावी सहज परमात्मत्वको अभेद अाराधना करना ॥१६४॥
अब मोहग्रंथिके टूटने से क्या होता है यह निरूपण करते हैं..--- [ निहतमोहग्रंथिः] नष्ट किया है मोहको गांठको जिसने ऐसा [यः] जो ग्रात्मा [रागद्वेषौ क्षपयित्वा] रागद्वेषको नष्ट करके, [समसुख दुःख] सुख-दुःख में समान होता हुप्रा श्रामण्ये भवेत् ] श्रमणपने में परिणमता है, [सः] वह [अक्षयं सौख्यं] अक्षय सौख्यको [लभते] प्राप्त करना है।
____टोकार्थ- मोहग्रंथिका क्षय होनेसे मोहग्रंथि जिसका मूल है ऐसे रागद्वेष का क्षय होता है; उससे सुख दुःख में समान रहने वाले जीवका परम माध्यस्थ्यस्वरूप श्रमणपने में परिणमन होता है; और उससे अनाकुलता जिसका लक्षण है ऐसे अक्षय सुख का लाभ प्राप्त होता है ।
इससे यह कहा है कि मोहरूपो ग्रंथि के छेदनेसे प्रक्षय सौख्यरूप फल होता है।