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प्रवचनसार - सप्तदशांगी टीका
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रूपणात्मको व्यवहारयः । उभावप्येतौ स्तः शुद्धाशुद्धत्वेनोभयथा द्रव्यस्य प्रतीयमानत्वात् । ftihread forests: साधकतमत्वादुपासः साध्यस्य हि शुद्धत्वेन द्रव्यस्य शुद्धत्वद्योतत्वान्नि श्वपनय एव साधकतमो न पुनरशुद्धत्वद्योतको व्यवहारनयः ॥१८६॥
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भणित: प्र० ए० कृदन्त क्रिया । अरहंतेहि अद्भिः तृतीया बहु० । ववहारो व्यवहारः-प्र० एक० । अण्णहा अन्यथा अव्यय । भणिदो भणितः प्रथमा एक कृदन्त किया । निरुक्ति यतते यः स यतिः यती प्रयत्न स्वादि । समास- बन्धानां समासः इति बन्धसमासः ||१८||
प्रसंगविवरण --- प्रनन्तरपूर्व गाथामें "एक जीव ही को निश्चय से बन्ध कहा गया या । अब इस गाथामें तद्विषयक निश्चय व्यवहारका विरोध मिटाया गया है ।
तथ्यप्रकाश -- ( १ ) निश्वयसे रागपरिणाम ही अशुद्ध आत्माका कर्म (कार्य) है । (२) वह रागपरिणामरूप भावकर्म पुण्यरूप व पापरूप है । ( ३ ) रागपरिणामका ही यह प्रशुद्ध प्रा मा कर्ता है । ( ४ ) यह शुद्धात्मा राजपरिणामका ही ग्रहण करने वाला | ( ५ ) यह श्रात्मा सहजात्मस्वरूपको अपनाता हुमा राजपरिणामका त्याच करने वाला है । ( ६ ) पुद्गल के परि Sangat माका कर्म बताना उपचार है । ( ७ ) पुद्गलकर्म पुण्यकर्म व पापकर्म यों दो प्रकारका है । (८) पुद्गलपरिणमनका कर्ता, ग्राहक व त्याग करने वाला आत्माको कहना उपचार है । (६) निश्चयनय एक द्रव्यका निरूपक है । (१०) व्यवहारनव परोपाधियुक्तताका तिरूपक है | ( ११ ) उपचार एकद्रव्यके परिणामको अन्य द्रव्यमें आरोपित करता है । (१२) जीवद्रव्य स्वतन्त्र सत् है अतः शुद्ध है याने समस्त परसे विविक्त है विकारपरिणमनरूप भी यहीं परिणमता है । (१३) जीवका विकार परिणमन सहजस्वभावसे नहीं होता है, किन्तु पर उपाधिका सान्निध्य निमित्त पाकर ही होता प्रसः प्रशुद्ध है याने सोपाधि है । (१४) निश्चयजय केवल जीवद्रव्यको निरखता हुआ तद्विषयक ज्ञान कराता है । (१५) उपचारनामक व्यव हास्य निमित्तनैमित्तिक भावको प्रकट करने के लिये उसकी सीमासे बढ़कर जीवको पुद्गल का कर्ता, ग्रहणकर्ता व त्यागकर्ता बताता है । (१६) स्वयंको साध्य केवल स्वयं जीवद्रव्य अतः उसका ही निरखने वाला निश्वयनय सोधकतम है ।
सिद्धान्त - १ - संसारी जीव अपने ही प्रशूद्ध परिणामका करने वाला है । २-जीव मुद्गलादि किमी भी परद्रव्यका करने वाला नहीं हो सकता ।
दृष्टि - १ - शुद्ध निश्चयनय (४७) । २- प्रतिषेधक शुद्धनय (४६) ।
प्रयोग — अपने श्रात्माको शुद्ध स्थिति में रखनेके लिये कर्मोपाविसे विविक्त केवल