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सहजानन्दशास्त्रमालायां
अथ विशिष्टपरिणामविशेषमविशिष्टपरिणामं च कारणे कार्यमुपचर्य कार्यत्वेन निर्दिशति-
सुपरिणामो पुणं हो पाव त्ति भणियमोसु । परिणामो गणगदो दुक्खक्खयकारणं समये ॥१८२॥
शुभ परिणाम पुण्य है, व प्रशुभ परिणाम पाप कहलाता । परिणाम स्वोपयोगी, दुखोंके नाशका कारण ।। १८१ ।।
शुभ परिणामः पुण्यमशुभः पापमिति भणितमन्येषु । परिणामोऽनन्यगतो दुःखक्षयकारणं समये ॥ १५१ ॥ द्विविधस्तावत्परिणामः परद्रव्यप्रवृत्तः स्वद्रव्यप्रवृत्तश्च । तत्र परद्रव्यप्रवृत्तः परोपरक्तविशिष्ट परिणामः स्वद्रव्यप्रवृत्तस्तु परानुपरकत्वादविशिष्ट परिणामः । तत्रोक्त विशिष्टपरिटपरिणामस्य विशेष, शुभ परिणामोऽशुभपरिणामश्च 1 तत्र पुण्यपुद् गलबन्धकारण
नामसंज्ञ - सुपरिणामो गुण्णं असुहो पाव इति भणिय अण्ण परिणामो परिणामो गणगदो दुक्खवख्यकारण समय | धातुसंज्ञ भण कथने । प्रातिपदिक- शुभपरिणाम पुण्य अशुभ पाप इति भणित अन्य परिणाम अनन्यगत दुःखक्षयकारण समय । मूलधातु भण शब्दार्थः । उभयपदविवरण सुहपरिणामो शुभ परिणामः पुण्णं पुष्यं असुहो अशुभः पात्र पापं परिणामो परिणामः गणगदो अनन्यगतः दुक्ख
प्रयोग ----बन्ध से निवृत्त होनेके लिये शुभाशुभभावरहित सहज चैतन्यस्वरूपमें आत्मत्व • स्वीकारना व अनुभवना ॥१८०॥
श्रम विशिष्ट परिणामके भेदको और श्रवशिष्ट परिणामको कारण कार्यको उपच रित करके कार्यरूप से बतलाते हैं - [प्रन्येषु ] दूसरोंमें अर्थात् परपदार्थका आश्रय कर होने वाला [शुभ परिणाम] शुभ परिणाम [ पुण्यम् ] पुण्य है, [ श्रशुभः ] प्रशुभ परिणाम [ पापम् ] पाप है [ अनन्यगतः परिणामः ] तथा अन्यमें न गया हुआ परिणाम [ दुःखक्षयकारणम् ] दुःखक्षयका कारण है [ इति समये भणितं ] ऐसा आगममें कहा गया है ।
तात्पर्य -- शुभ परिणाम पुण्य है, अशुभ परिणाम पाप है और शुद्ध परिणाम धर्म है जो कर्मक्षयका कारण है ।
टीकार्थ- मूल में तो परिणाम दो प्रकारका है--परद्रव्यप्रवृत्त और स्वद्रव्यप्रवृत्त । इनमें से परद्रव्यप्रवृत्तपरिणाम परके निमित्तसे विकारी होनेसे विशिष्ट परिणाम है, और स्वद्रव्य प्रवृत्त परिणाम परके द्वारा उपरक्त न होनेसे प्रविशिष्ट परिणाम है । उसमें विशिष्ट परिणाम के पूर्वोक्त दो भेद हैं- शुभपरिणाम और अशुभपरिणाम | उनमें पुण्यरूप पुद्गलके बंधका कारणपना होनेसे शुभ परिणाम पुण्य है और पापरूप पुद्गलके बंधका कारण होनेसे अशुभ परिणाम पाप है । अविशिष्ट परिणामका तो शुद्धपना होनेसे एकत्व होनेके कारण कोई