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सहजानंदशास्त्रमालायां योगिभिरतिसूक्ष्मस्थूलतया तदयोगिभिश्चावगाहविशिष्टत्वेन परस्परमबाधमानः स्वयमेव सर्वत एव पुद्गलकायैर्गाढं निचितो लोकः । ततोऽवधार्यते न पुद्गलपिण्डानामानेता पुरुषोऽस्ति ।१६८।
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योग्यः जोग्गेहि योग्यैः-तृतीया बहवचन । निरुक्ति-अवगाहतेस्म असौ इति अवगाढः, चीयते यः सः कायः चित्र चयने, योगाय प्रभवति यः स योग्यः । समास-गाढं निचितः इति अवगाढनिचितः अवगाढश्चासौ गाढनिचितश्चेति अवगाढगाढनिचितः ।।१६८॥
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तात्पर्य-लोक विविध पुद्गलस्कंधोंसे सारा भरा हुया है, उनका लाने वाला प्रात्मा नहीं।
टोकार्थ----सूक्ष्मरूप परिणत तथा वादररूप परिणत, अति सूक्ष्म अथवा प्रतिस्थूल न होनेसे कर्मरूप परिणत होनेकी शक्ति वाले, तथा अति सूक्ष्म अथवा अति स्थूल होनेसे कर्मरूप परिणत होनेकी शक्तिसे रहित अवगाहकी विशिष्टताके कारण परस्पर बाधा न करने वाले सूक्ष्मरूप परिणत व वादररूप परिणत पुद्गल स्कन्धोंके द्वारा स्वयमेव यह लोक सर्वतः गाढ़ भरा हुआ है । इसमें निश्चित होता है कि पुद्गलपिण्डोंका लाने वाला आत्मा नहीं है ।।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रात्मा पुद्गलपिण्डका कर्ता नहीं है । अब इस गाथामें बताया गया है कि प्रात्मा पुद्गलपिण्डका लाने वाला भी नहीं है।
तथ्यप्रकाश--(१) यह लोक सब ओरसे स्वयं ही सूक्ष्मरूप परिणत व वादररूप परि. णत पुद्गल कायोंसे भरा हुआ है । (२) उन पुद्गलकायोंमें ऐसा हो परस्पर अवगाह विशेष है जिस कारण उनके एकत्र रहने में परस्पर कोई बाधा नहीं पाती। (३) इन सब पौद्गलिक कायोंमें (पिण्डोंमें) अनेक तो कर्मत्वपरिणमनशक्ति वाले हैं जो कि न अतिसूक्ष्म हैं और न प्रतिस्थूल हैं । (४) उन सब पुद्गलकायों (पिण्डों) में अनेक ऐसे हैं जो कर्मरूप परिणमन शक्तिसे रहित है जो कि अतिसूक्ष्म हैं व अतिस्थूल हैं । (५) इस लोकमें सभी जगह जीव हैं और कर्मबन्धके योग्य कार्माणवर्गणा नामक पुद्गलपिण्ड भी सभी जगह हैं। (६) प्रत्येक संसारी जीवके साथ भी एक क्षेत्रावगाही विस्रसोपचय वाली कार्माणवर्गणायें भी स्वयं हैं । (७) जब जीव पूर्वबद्ध पुद्गलकर्मविपाकोदयका निमित्त पाकर शुभ अशुभ भावसे परिणत होता है तब तत्काल ही ये कार्मारणवर्गणायें स्वयं कर्मरूप परिणत हो जाती हैं । (८) इन कार्माणवर्गणारूप या कर्मरूप पुद्गलपिण्डोंको किसी बाहरके स्थानसे जीव नही लाता । (६) ऐसा भी नहीं है कि जीव किसी बाहरके स्थानसे कर्मयोग्य पुद्गल लाकर उनका बन्ध करता हो । (१०) सो जैसे प्रात्मा पुद्गलपिण्डोंका कर्ता नहीं है, इसी प्रकार प्रात्मा किन्हीं भी पुद्गलपिण्डोंका आनेता अर्थात् लाने वाला भी नहीं है । (११) हाथ आदिके संयोगका निमित्त
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