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प्रवचनसार--सप्तदशांगी टीका अप भावबन्धयुक्ति द्रव्यचन्दस्वरूप प्रज्ञापयति--
भावेण जेण जीवो पेच्छदि जाणादि आगदं विसये । रजदि तेणेव पुणो बज्झदि कम्म त्ति उवदेसो ॥१७६॥ जिस रामादि भावसे, विषयागत वस्तु जानता लखता ।
उससे हो रक्त होता, बँध जाता कर्मसे वह फिर ।।१७६।। भाषेत येन जीवः पश्यति जानात्यागतं विषये। रज्यति तेनैव पुनर्वध्यते कमत्युपदेश: ।। १७६ 11 ante अयमात्मा साकारनिराकारपरिच्छेदात्मकत्वात्परिच्छेद्यतामापद्यमानमर्थ जातं येनैव मोहपेरण रागरूपेण द्वेष रूपेरण वा भावेन पश्यति जानाति च तेनंवोपरज्यत एव । मोऽयमुपसा: स खलु स्निग्धरूक्षत्वस्थानीयो भावबन्धः । अथ पुनस्तेनैव पोद्गलिक कर्म बध्यत एव, त्यष भावबन्धप्रत्ययो द्रव्यबन्धः ।।१७६॥
नामसंज-भाव ज जीव आगद विसय त एव पुणो कम्म त्ति उवदेस । धातुसंज्ञ-...प इक्ख दर्शने, म अवयोधने, रज्ज रागे, बंध बंधने' । प्रातिपदिक-भाव यत् जीव आगत विषय तत् एव पुनर् कर्मन् पति उपदेश । मुलधातु-दृशिर प्रेक्षणे. ज्ञा अवबोधने, रंज समे, बन्ध बन्धने । उभयपदविवरण-भावेण भावेन डेग येन तेण तेन-तृतीया एकवचन । जीवो जीव: कम्म कर्म उवदेसो उपदेशः-प्रथमा एक यदि पश्यति जाणदि जानाति रज्जदि रज्यति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । आगदं आमत
एक । विसये विषये-सप्तमी एक० । एव पुणो पुनः नि इति-अध्धय । बज्मदि बध्यते-वर्त अन्य ० र भावकर्मप्रक्रिया । निरुक्ति- उपदेशन उपदेशः ।।१७६।।
टीकार्थ----यह आत्मा साकार और निराकार प्रतिभासस्वरूप होनेसे प्रतिभास्य पदार्थ समहको जिस मोहरूप, रागरूप या द्वेषरूप भावसे देखता है और जानता है, उसीसे उपरक्त माता है । जो यह उपराग (विकार) है वह वास्तवमें स्निग्धरूक्षत्वस्थानीय भावबंध है ! और एसोसे अवश्य पौगिलक कर्म बंधता है । इस प्रकार वह द्रव्यबंधका निमित्त भावबंध है ।
- प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें भावबन्धका स्वरूप बताया गया था । अब इस माया भावबन्धको युक्ति और द्रव्य बन्धके स्वरूपको बताया गया है ।
तिथ्यप्रकाश---(१) यह जोव जिस ही मोहरूप, रागरूप या द्वेषरूप भावसे पदार्थोंको खता जानता है उस ही भावसे उपरक्त (गलिन) हो जाता है । (२) जो भी यह उपराग है
म ही द्वारा पौद्गलिक कर्म बंध जाता है 1 (३) यह उपराग हो भावबंध है जो कि पुद= पनकर्म के साथ जीवको बद्ध कर देने में कारण है । (४) जैसे पुद्गलका स्निग्ध रूक्षपना बन्ध
कारण है ऐसे ही जीवका यह उपराग बन्धका कारण है । (५) पौद्गलिककर्मबन्ध भाव. निमित्तक है।