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सहजानन्दशास्त्रमालायां अथ पुद्गलजीवतदुभरवन्धस्वरूपं ज्ञापयति
फासेहिं पुग्गलाणं बंधो जीवस्स रागमादीहिं । अण्णहोण्णामवगाहो पुग्गलजीवप्पगो भणिदो ॥१७७॥ स्पर्शसे पुद्गलोंका, प्रात्माका बन्ध राग आदिकसे ।
पारस्पर प्रावगाहन, पुद्गलजीवात्मबन्ध कहा ॥१७७।। स्पशः पुद्गलानां बन्धो जोवस्य रागादिभिः। अन्योन्यमवगाहः पुद्गलजीवात्मनो भणितः ॥ १७ ॥
___ यस्तावदत्र कर्मणां स्निग्धरूक्षत्वस्पर्शविशेषरेकत्व परिणामः स केवलपुद्गलबन्धः । यस्तु जीवस्यौपाधिकमोहरागद्वेषपर्यायरेकत्वपरिणामः स केवलजीवबन्धः । यः पुनः जीवकर्मा
नामसंज्ञ---- फास पुग्मल बंध जीव रागमादि अण्णोण अवगाह पुग्गलजीवायण भणिद । धातुसंह
सिद्धान्त-~-(१) भावबन्धकी योजना अशुद्धोपयोगसे होती है । (२) नवीन द्रव्यकर्म का बन्ध भावबन्ध निमिसक है । (३) भावबन्ध द्रव्यप्रत्ययनिमित्तक है।
दृष्टि----१- उपादानदृष्टि (४६ ब) । २-- उपाविसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यायिकनय, निमित्त त्वनिमित्तदृष्टि निमित्तदृष्टि (५३, ५३स, ५६ब)। ३- उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनया निमित्तदृष्टि (५३. ५३अ)।
प्रयोग ... भावबन्ध द द्रव्यबंधसे छुटकारा पानेके लिये अविकार चित्स्वभाव में प्रामा त्वका अनुभव करना ॥१७६॥
अब पुद्गलबंध, जीवबंध और उन दोनोंके बंधस्वरूपको बतलाते हैं-स्पते।। स्पोंके द्वारा [पुद्गलानां बंधः] पुद्गलोंका बंध, [रागादिभिः जीवस्य] रागादिकोंके द्वारा जीवका बंध, और [अन्योन्यम् अवगाहः] अन्योन्य अवगाहरूप [पुद्गलजीवात्मकः मरिणतः ।। पुद्गलजीवात्मक बंध कहा गया है।
तात्पर्य-कर्मवर्गणाके परस्पर बंधको द्रव्यबंध, उपयोगमें रामादिक पानेको जीववव व जीव एवं कर्मपुद्गल के परस्पर अवगाह होनेको उभयबंध कहते हैं।
टीकार्थ....- प्रथम तो यहाँ, कर्मोका जो स्निग्धतारूक्षतारूप स्पर्शविशेषों के साथ एक त्वपरिणाम है यह केवल पुद्गलबंध है; और जीवका प्रोपाधिक मोह-राम द्वेषरूप पर्यायो । साथ जो एकत्व परिणाम है वह केवल जीवबंध है; और जीव तथा कर्मपुद्गलके परस्पा । परिणामके निमित्तमानपनेसे जो विशिष्टतर परस्पर अवगाह है वह उभयबंध है।
प्रसंगविवरण--अनन्तरपूर्व गाथामें भावबन्धकी युक्ति एवं द्रव्यबन्धका स्वरूप बताया। गया था। अब इस गाथामें द्रव्यबंध, भावबंध व उभयबंधका स्वरूप बताया गया है।