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सहजानन्दशास्त्रमालायां
अयात्र कीदृशास्निग्धरूक्षत्वापिण्डत्वमित्यावेदयति---
णिद्धा वा लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा वा । समदो दुराधिगा जदि बज्झति हि अादिपरिहीणा ॥१६५॥ रूक्ष हो स्निग्ध हो अणु-के वे परिणाम सम व विषम हो।
समसे द्वधधिक हो यदि, बंधते हैं किन्तु आदि रहित ॥१६५।। स्निग्धा वा रूक्षा या अशुपरिणामाः सभा वा विषमा वा । समतो द्वयधिका यदि बध्यन्ते हि आदिपरिः
हीना: ।।१६५ समतो द्वयधिकगुणाद्धि स्निग्धरूक्षत्वाबन्ध इत्युत्सर्गः, स्निग्धरूक्षयधिक गुणात्वन्य हि परिणामकान बन्धसाधनत्वात् । न खल्वेकगुणात् स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्ध इत्यपवादः एकगुणः
नामसंज..... गिद्ध वा लुक्ख अगुपरिणाम सम विसय सभदों दुराधिग जदि हि आदिपरिहीण। धातुसंज्ञ - बंध बन्धने । प्रातिपदिक--स्निग्ध वा रूक्ष वा अशुपरिणाम सम वा विषम बा समतः द्वयधिक होता है ?
तथ्यप्रकाश---(१) परमाणुके परिणामन तो होता ही रहता है, क्योंकि परिणमन (पर्याय) होते रहना प्रत्येक वस्तुका स्वभाव है । (२) परमाणुवोंमें स्निग्धत्व, रूक्षत्व, शोत, उष्ण ये चार प्रकारके पर्याय होते हैं । (३) परमाणुके वे चार गुष्पपर्यायके एकसे लेकर अनंत तक अविभागप्रतिच्छेदों में होते है । (४) पुद्गलके उन चार पर्यायोंमें स्निग्धत्व व रूक्षत्व ये दो ही परिणमन परमाणुवोंके परस्पर बन्धके कारणभूत हैं। .
सिद्धान्त--(१) परमाणु परस्पर बँध बंधकर शरीरादि पिण्डरूप में बहुप्रदेशी स्कन्ध हो जाते हैं।
दृष्टि-१- स्वजात्यसद्भुत व्यवहार, अशुद्ध स्थूल ऋजुसूत्र (३१) ।
प्रयोग- शरीरादि पिण्डोंका कर्तृत्व पुद्गलोंमें ही देखकर अपनेको अकर्ता जानकर समस्त पिण्ड श्रादि परपदार्थोसे ममत्व पूर्णतया दूर करना और उनकी किसी भी परिणति में रागद्वेष न कर मध्यस्थ रहना ।।१६४॥
अब यहाँ किस प्रकारके स्निग्धत्व रूक्षत्वसे पिण्डपना होता है, यह बतलाते हैं। [अणुपरिणामाः] परमाणुके परिणाम अर्थात् पर्याय [स्निग्धाः वा स्क्षाः वा] स्निग्ध हो या रुक्ष हों [समाः वा विषमाः वा] सम अंश वाले हों या विषम अंश वाले हों [यदि आदि. परिहीनः समतः द्वयधिकाः] यदि जघन्य अंशसे रहित व समानतासे दो अधिक अंश वाले हों। तो [बध्यन्ते हि] बंधते हैं।