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सहजानन्दशास्त्रमालायो अथ परमाणुना पिण्डत्वस्य यथोदितहेतुत्वमवधारयति
गिद्वत्तोण दुगुणो चदुगुणणिद्धगा बंधमणुभवदि । लुक्खेण वा तिगुणिदो अगु बज्झदि पंचगुण जुत्तो ॥१६६॥ स्निग्ध द्विगुरण परमाणु, बद्ध चतुगुणी स्निग्धसे होता।
त्रिगुरण रूक्षसे बँधता, पञ्चगुरपणी अन्य परमाणू ॥१६६।। स्निग्धत्वेन द्विगुणश्चतुर्गुणस्निग्धेन बन्धभनुभवति । रूक्षेण वा विगुणितोऽशुबध्यते पंचगुणयुक्तः ॥१६॥
___ यथोदितहेतुकमेव परमाणनां पिण्डत्वमबधार्य द्विचतुगुणयोस्त्रिपञ्च गुणयोश्च द्वयोः स्निग्धयोः द्वयो रूक्षयोर्द्वयोः स्निग्धरूक्ष योर्दा परमाण्वोर्बन्धस्य प्रसिद्धेः । उक्तं च "णिद्धा ___नामसंज्ञ-णिद्धत्तण दुगुण चदुगुणणिद्ध बंध लुबख वा तिगुणिद अणु पंचगुण जुत्त । धातुसंज.. अणुः ह्व सत्तायां, बंध बंधने । प्रातिपदिक-~-स्निग्धत्व द्विगुण चतुर्गुणस्निग्धत्व बन्ध बा रूक्ष वा त्रिगुणित अशु पंचगुणयुक्त । मूलधातु-अनु भू सत्तायां, बन्ध वन्यने । उभयपदविवरण... णित्तरोण स्निग्धत्वेन चदुमुणणिद्धण चतुगुणस्निग्धेन लुक्खेण रूक्षेण-तृतीया एकवचन । दुगुणी द्विगुणः तिगुणिदो त्रिगुणित द्विगुणः] स्निग्धरूपसे दो अंश वाला परमारण चतुर्युगस्निग्धेन] चार अंश वाले स्निग्ध [वा रूक्षेरण] अथवा रूक्ष [बंध अनुभवति] बंधको प्राप्त होता है। [त्रिगुरिंगतः अणुः] तथा तीन अंश वाला परमारण [पंचगुणयुक्तः] पाँच अंश वाले के साथ युक्त होता हुआ [बध्यते] बंधता है।
तात्पर्य---परमारण अपनेसे दो अंश अधिक स्निग्ध रूक्ष परमार से बंध जाता हैं। किन्तु एक अंशके स्निग्ध रूक्ष अणुका बंध नहीं होता।
टोकार्थ-यत्रोक्त हेतुसे ही परमाणुओंके पिण्डत्व होता है, यह करना चाहिये; क्योंकि दो और चार गुण वाले तथा तीन और पाँच गुण वाले दो स्निग्ध परमारगोंके अथवा दो रूक्ष परमारणोंके अथवा दो स्निग्ध-रूक्ष परमाणोंके बंधकी प्रसिद्धि है। कहा भी है। "णिभा गिद्धेण बज्झति लुक्खा लुक्खा य पोग्गला । गिद्धलुक्खा य बज्झति रूवारूबी थ पोग्गला ॥" "णिद्धस्स रिपद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेरा दुराहिएण । गिद्धस्स लुक्खेण, हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ।।"
प्रसंगविवरण-अनंतरपूर्व गाथामें बताया गया था कि कैसे स्निग्ध रूक्षपनेसे पिण्डी पना होता है। अब इस गाथामें परमारणवोंके पिण्ड पनेका पूर्व गाथाकथित हेतुपनेका सोदाहः रण दृढ़तासे निश्चय किया गया है:
तण्यप्रकाश-(१) परमाणु वोंके पिण्डपना होनेका कारण जघन्यगुण रहित व एक
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