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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका स्निग्धरूक्षत्वस्य हि परिणभ्यपरिणामकत्वाभावेन बन्धस्यासाधनत्वात् ॥१६५।। "यदि हि आदिपरिहीन । मूलधातु-बन्ध बन्धने । उभयपदविवरण---णिहा स्निग्धाः लुक्खा रूक्षा: अणुपरिणामा अशुपरिणामाः समा समा: विसमा विषमा: दुराधिगा द्वधधिका: आदिपरिहीणा आदिपरिहोगा:-प्रथमा बहुवचन । बज्झलि बध्यन्ते-वर्तमान अन्य पुरुष बहुवचन भावकर्मप्रक्रिया । निरुक्ति--- रुक्ष पारुष्ये, परिणमनं परिणामः । समास-- अणोः परिणामाः अशुपरिणामाः ।।१६५||
- तात्पर्य---दो व अधिक डिग्रोके स्निग्ध या रूक्ष परमाणु अपने से दो अधिक डिग्रीके स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ बंध जाते हैं।
टीकार्थ---समानसे दो अंश अधिक स्निग्धत्व या रूक्षत्व होनेसे बंध होता है, यह उत्सर्ग है; क्योंकि स्निग्धत्व था रूक्षत्वको द्विगुणाधिकता निश्च यसे परिणामक होनेसे बंधका कारण है । निश्चयतः एक गुण स्निग्धत्व या रूक्षत्व होनेसे बंध नहीं होता, यह अपवाद है; क्योंकि एक गुण स्निग्यत्व या रूक्षत्वके परिणम्य परिणामकताका अभाव होनेसे बंधके कारण पनका अभाव है। व प्रसङ्गविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें परमाणुवोंके पिण्डत्वके साधनभूत स्निग्धत्व व रुक्षत्वके अनेक अविभाग प्रतिच्छेदोंके रूपमें परिणमन बताया गया था। अब इस गाथामें बताया गया है कि किस प्रकारके अविभागी प्रतिच्छेदोंमें परिणत परमारगुवोंका स्निग्धत्व हक्षत्व परस्पर बन्धका कारण होता है।
तथ्यप्रकाश--(१) एक अविभागप्रतिच्छेदमें परिगात स्निग्धत्व व रूक्षत्व बन्धका कारण नहीं होता, जैसे कि जघन्य गुण बाला स्लेह मोह परिणाम मोहनीय प्रकृतिके बन्धका कारण नहीं होता । (२) दो ग्रादि प्रविभाग प्रतिच्छेदों में परिणत स्निग्धत्व व रूक्षत्व बन्ध का कारण हो सकता है। (३) जिन परमाणुवोंमें स्निग्धस्व व रूक्षत्व एकसे दूसरे में दो अधिक अविभागप्रतिच्छेद वाला हो, उन परमाणुवोंका परस्पर बन्ध होता है, वे परमाणु परपर चाहे स्निग्ध स्निग्ध हों या रूक्ष रूक्ष हों या स्निग्ध रूक्ष हों या रूक्ष स्निग्ध हो ।
सिद्धान्त---(१) परमाणुवोंका पिण्डरूप पर्यायमें पानेका कारण विशिष्ट स्निग्धत्व रुक्षय युक्त परमाणु ही हैं।
दृष्टि----१- उपादानदृष्टि (४६ब)। पति: । प्रयोग-प्रात्मा शरीरादि पिण्डरूप बनानेका की प्रादि रंच मात्र भी नहीं है, अतः इन समस्त परपदार्थों को अपनेसे अत्यन्त भिन्न जानकर उनसे उपयोग हटाना और अपने स्वरूपमें उपयोग लगाना ॥१६॥ - अब परमाणुओंके पिण्डपनेका यथोक्त हेतु दृढ़तासे निश्चित करते हैं---[स्निग्धत्वेन
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