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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका
ae ater afterधरूक्षत्वं परमारगोतित्यावेदयति
एगुत्तरमेगादी गुस्स सिद्धत्तणं च लुक्खत्तं । परिणामादो भणिदं जाव तत्तमभवदि ॥ १६४ ॥
एकादिक एकोत्तर, अणुके स्निग्धत्व रूक्षता होतो । परिगतिस्वभाववशसे, जब तक भि अनन्यता होती ॥ १६४ ॥
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एकतरमेकाद्यणोः स्निग्धत्वं वा रुक्षत्वम् । परिणामाद्भूणितं यावदन्तत्वमनुभवति ॥ १६४ ॥ परमाणहि तावदस्ति परिणामः तस्य वस्तुस्वभावत्वेनानतिक्रमात् । ततस्तु परिणामादुपात कादाचित्कवैचित्र्यं चित्रगुणयोगित्वावर माणोरे कार्य कोत्तरानन्तावसाना विभागपरिच्छेदव्यापि स्निग्धस्वं वा रूक्षत्वं वा भवति ॥१६४॥
नामसंज्ञ- -- एगुत्तर एगादि अशुद्धित्त च वखत परिणाम भागद जाव अणतत्त । धातुसंज्ञ-अणु भव सत्तायां । प्रातिपदिक- एकोत्तर एकादि अणु स्निग्धत्व वा रूक्षत्व परिणाम भणित यावत् अनंतत्व । मूलघातु-अनु भू सत्तायां । उभयपदविवरण --एगादि एकादि एमुत्तरं एकोत्तरं मिद्धत्तण स्निग्धत्वं वखत रूक्षत्वं - प्रथमा एकवचन । अगुस्स अणोः पष्ठी एक परिणामादो परिणामातृ-पंचमी एक० । भणिदं भणितं प्र० एक० कृदन्त क्रिया । च जाय यावत् अभ्यय । अणतत्तं अनन्तत्वं - द्वितीया एकवचन | अशुभवदि अनुभवति - वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया । निरुक्ति स्निह्यति स्म यः सः ferre: fore stat दिवादि ष्णिह स्नेहते चुरादि || १६४||
अब परमाणुके वह स्निग्ध रूक्षत्व किस प्रकारका होता है, यह बतलाते हैं[रपोः] परमाणु [ परिणामात्] परिणमनके कारण [ एकादि] एक अविभाग प्रतिच्छेद से लेकर [ एकोतरं ] एक-एक बढ़ता हुआ [ स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं ] स्निग्धत्व अथवा रूक्षत्व [[भरितम् ] कहा गया है। [यावत् ] जब तक कि [ श्रनन्तत्वं अनुभवति ] अनन्त विभागप्रतिच्छेदपनेको प्राप्त होता है ।
तात्पर्य -- परमाणु एक डिग्रीसे प्रनन्त डिग्री तक्के स्निग्ध रूक्ष होते हैं ।
टीकार्थ- वास्तव में परमो के परिणमन होता है, क्योंकि वस्तुस्वभावपनेसे उसका उलंघन नहीं होता । इस कारण अनेक प्रकारके गुणों वाले परमार के परिणमनके कारण प्राप्त किया है क्षणिक वैचित्र्य जिसने ऐसा, एकसे लेकर एक-एक बढ़ते हुये अनन्त श्रविभागोप्रतिच्छेदों तक व्याप्त होने वाला स्निग्धत्व प्रथवा रूक्षत्व होता है ।
प्रसंगविवरण --- अनंतरपूर्व गाथा में परमाणुवोंका पिण्डरूप होनेका कारण परमाणुमें होने वाला स्निग्वत्व व रूक्षत्वको बताया गया था । अब इस गाथामें बताया गया है कि पर hariat a ferrera रूक्षत्व पिण्डरूप होनेका अर्थात् परस्पर बस्थ होनेका कारण कैसे