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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका अथायमुए योगो द्वेधा विशिष्यते शुद्धाशुद्धत्वेन । तत्र शुद्धो निरुपरागः, अशुद्धः सोपरागः । स विशुद्धिसंबले शारूपत्वेन लैविध्यादुपरागस्य द्विविधः शुभोऽशुभश्च ।। ५५५।।
गप्पा उपयोगात्मा उवओगो उपयोग: णाणदंसणं ज्ञानदर्शनं सोस: राहो शुभः असुही अशुभः उबWatगो उपयोग:-प्रथमा एकवचन । अपणो आत्मन:-बाठी एकवचन । चि अपि बा-अव्यय । हदि भवति वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया । भाणदो भगितः-प्रथमा एकवचन क्रिया कृदन्न । निरुक्तिउपयोजन उपयोग: युभिर योगे युज संयमने यूज समाधी। समास-उपयोगः आत्मा यस्य स - माशानं च दर्शनं चेति ज्ञानदर्शनं तयोः समाहारः ज्ञानदर्शनम् ।। १५ । । का है, क्योंकि आराम विशुद्धि रूप और सक्लेशरूप दो प्रकारका है ।।
प्रसंगविवरण- अनन्त र पूर्व गाथामें स्वपरविभागके कारणभूत स्वम्पास्तित्व का संकेत किया गया था। अब इस गाथामें प्रात्माको अत्यंत विभक्त करने के लिये पर द्रव्यसंयोगके कारणका स्वरूप विचारा गया है ।
। तथ्यप्रकाश - १- प्रात्माके साथ कर्म नोकमरूप पर द्रव्यके संयोगका कारण प्रात्मा का शुभाशुभ उपयोग है । २- उपयोग तो आत्माका स्वभाव है, क्योंकि वह चैतन्यका अनुसऔरणा करने वाला परिणाम है । ३--उपयोग निराकार व साकार दो रूप होता है । ४-साकार सुयोग ज्ञान है । ५.-- निराकार उपयोग दर्शन है । ६. इस आत्माके साथ उपाधि अनादिकालसे चलो पा रही है, जिससे प्रात्मापर उपराग लदा है। ७. उपराग शुभ व अशुभ दो प्रकारका है। -- शुभ उपरागके सम्बन्धसे उपयोग शुभोपयोग होता है । ६- अशुभ उपराग के सम्बंधसे उपयोग अशुभोपयोग होता है । १०-जब उपराग नहीं रहता तब उपयोग शुद्धोपयोग होता है। ११- मात्र शुद्ध ज्ञाता द्रष्टा रहना शुद्धोपयोग है। १२-- धर्मानुरागरूप उपयोग शुभोपयोग है । १३- विषयानुरागरूप व द्वेष मोहरूप उपयोग अशुभोपयोग है।
सिद्धान्त---(१) शुद्धोपयोग स्वाभाविक अवस्था है । २- शुभोपयोग व अशुभोपयोग भाविक अवस्था है।
दृष्टि--- १- उपाध्यभावापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय, स्वभाव गुणव्यञ्जनपर्याय (२४, २६२) । २-- उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय, विभावगुणव्यञ्जनपर्याय (२४, २१३) ।
प्रयोग-शाश्वत पवित्र व निराकुल रहने के लिये सोपरागोपयोग न करके मात्र ज्ञाता द्रष्टा रहनेका पौरुष करना ।।१५५॥
स अब कौनसा उपयोग परद्रव्यके संयोगका कारण है यह बताते हैं-- उपयोगः] उपयोग यिदि हि] यदि [शुभः] शुभ हो तो [जीवस्य] जीवका पुण्यं ] पुण्य [संचयं याति] संचयको प्राप्त होता है, [तथा वा अशुभः] और यदि अशुभ हो सो [पापं] पाप संत्रयको
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