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सहजानन्दशास्त्रमालायां
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अथात्र के उपयोगः परद्रध्यसंयोगकारणमित्यावेदयति
उवनोगो जदि हि सुहो पुण्ण जीवस्स संचयं जादि । असुहो वा तध पावं तेसिमभावे ण चयमस्थि ॥१५६॥
उपयोग यदि अशुभ हो, तो हो जीवके पापका संचय ।
शुभसे हि पुण्यसंचय, नहि बन्ध उभय प्रभावोंमें ॥१५६॥ उपयोगो यदि हि शुभः पुण्यं जीवस्य संचयं याति । अशुभो वा तथा पापं तयोरभावे न चयोऽस्ति ।।१५६॥
उपयोगो हि जीवस्य परद्रव्यसंयोगकारणमशुद्ध: । स तु विशुद्धिसंक्लेशरूपोपरायवशात् । शुभाशुभत्वेनोपात्तद्वैविध्यः पुण्यपापत्वेनोपात्तद्वैविध्यस्य परद्रव्यस्य संगकारणस्थेन निवर्तयति । यदा तु द्विविधस्याप्यस्याशुद्धस्याभावः क्रियते तदा खलुपयोगः शुद्ध एवावतिष्ठते । स पुनर. कारणमेव परद्रव्यसंयोगस्य ॥१५६॥
नामसंज्ञ---उवओग जदि हि मुह गुण्ण जीव संजय असुह वा तध पावत अभाव ण नय | धातुसंजजा गतौ, अस सत्तायां । प्रातिपदिक-उपयोग यदि हि शुभ पुण्य जीव संचय अशुभ वा तथा पाप से अभाव ण चय । मूलधातु-पूत्र पवने क्र यादि, चि चयने, या प्रापणे, अस् भुवि । उभयपदविवरण उदओगो उपयोगः सुहो शुभः पुण्णं पुण्यं असहो अशुभः पावं पापं त्रयं चयः-प्रथमा एकवचन । जदि यदि हि वा तध तथा ण न-अव्यय । जीवस्स जीवस्य-पष्ठी एक० । संचयं-द्वितीया एक । जादि याति अस्थि अस्ति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया। तेरि-षष्ठी बह01 तयोः षष्ठी द्विवचन । अभावे-सप्तमी एकवचन । निरुक्ति- पुनाति आत्मानं इति पुण्यं, पाति रक्षति आत्मानं शुभात् इति पापं । चयनं चयः शोभनं शुभः ।।१५६॥ प्राप्त होता है। [तयो: प्रभावे] उन दोनोंके अभाव में [चयः नास्ति संचय नहीं होता ।
तात्पर्य-शुभोपयोगसे पुण्य, अशुभोपयोगसे पाप संचित होता है, किन्तु शुभ अशुभ दोनोंके प्रभाव में पुण्य पाप दोनोंका संचय नहीं ।
टोकार्थ—परद्रव्यके संयोगका कारण जीवका अशुद्ध उपयोग है । और वह विशुद्धि तथा संक्लेशरूप उपरागके कारण शुभ और अशुभरूपसे द्विविधताको प्राप्त होता हुप्रा, पुण्य
और पापरूपसे द्विविधताको प्राप्त होते हुए परद्रव्यके संयोगके कारणरूपसे काम करता है। किन्तु जब दोनों प्रकारके अशुद्धोपयोगका प्रभाव किया जाता है तब वास्तवमें उपयोग शुद्ध । ही रहता है; और वह परद्रव्यके संयोगका अकारण हो है ।।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व माथामें परद्रव्यसंयोगके कारणका विचार किया गया था । अब इस गाथामें बताया गया है कि कौनसा उपयोग परद्रव्य संयोगका कारण है।
तथ्यप्रकाश-(१) जीवका अशुद्ध उपयोग परद्रव्यके संयोगका कारण है 1 (२)
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