________________
२७८
Peakerso
n
alisa
सहजानन्दशास्त्रमालायां वृत्तेरन्तरभूतत्वात् । न च वृत्तिरेव केवला कालो भवितुमर्हति, वृत्तेहि वृत्तिमन्तमन्तरेणानुपपत्तेः । उपपत्तो वा कथमुत्पादव्य यध्रौव्यक्यात्मकत्वम् । अनाद्यन्तनिरन्तरानेकांशवशीकृतका. त्मकत्वेन पूर्वपूर्वाशप्रध्वंसादुत्तरोत्तरांशोत्पादादेकात्मध्रौव्यादिति चेत् । नैवम् । यस्मिन्नशे प्रध्वंसो यस्मिश्चोत्पादस्तयो. सहप्रवृत्त्यभावोत् कुतस्त्यमैक्यम् । तथा प्रध्वस्तांशस्य सर्वथास्तमितत्वादुत्पद्यमानांशस्य वासंभवितात्मलाभत्वात्प्रध्वंसोत्पादैक्यवतिध्रौव्यमेव कुतस्त्यम् । एवं सति नश्यति बेलक्षण्यं, उल्लसति क्षणभङ्गः, प्रस्तमुपैति नित्यं द्रव्यं, उदीयन्ते क्षणक्षयिणो भावा: । ततस्तत्त्वविप्लवभयात्कश्चिदवश्यमाश्रयभूतो वृत्तेर्वृत्तिमाननुसर्तव्यः । स तु प्रदेश णादुज्ञातुं-अव्यय हेत्वर्थे कृदन्त । सुण्णं शून्य-द्वितीया एक० । जाण जानीहि-आज्ञार्थे मध्यम पुरुष एकवचन क्रिया । संति-वर्तमान अन्य पुरुष बहु० क्रिया । तं अत्थं अर्थम्-द्वितीया एक० । अत्यंतरभूद जिस अंशमें नाश है और जिस अंशमें उत्पाद है वे दो अंश एक साथ प्रवृत्त नहीं होते, इसलिये उत्पाद और व्ययका ऐक्य कहाँसे हो सकता है ? तथा नष्ट अंशके सर्वथा अस्त होनेसे
और उत्पन्न होने वाला अंश अपने स्वरूपको प्राप्त न होनेसे नाश और उत्पादकी एकतामें प्रवर्तमान ध्रौव्य कहाँसे हो सकता है ? ऐसा होनेपर त्रिलक्षणता अर्थात् उत्पादव्ययध्रौव्यता नष्ट हो जाती है, क्षणभंग उल्लसित हो उठता है, नित्य द्रव्य अस्त हो जाता है, और क्षणविध्वंसी भाव उत्पन्न होते हैं । इस कारण तत्त्वविप्लवके भयसे अवश्य ही वृत्तिका प्रश्रियभूत कोई वृत्तिमान स्वीकार करना योग्य है । वह तो प्रदेश ही है अर्थात् वह वृत्तिमान सप्रदेश ही होता है, क्योंकि अप्रदेशके अन्वय तथा व्यतिरेकका अनुविधायित्व प्रसिद्ध है । प्रश्न-जब कि इस प्रकार काल सप्रदेश है तो उसके एकद्रव्य के कारणभूत लोकाकाश तुल्य असंख्यप्रदेश क्यों न । मानने चाहिये ? उत्तर-पर्यायसमयकी असिद्धि होनेसे कालद्रव्यके असंख्य प्रदेश मानना योग्य नहीं है । परमाणुके द्वारा प्रदेशमात्र द्रव्य समयका उल्लंघन करनेपर पर्यायसमय प्रसिद्ध होता है । यदि द्रव्यसमय लोकाकाशतुल्य असंख्यप्रदेशी हो तो पर्यायसमयको सिद्धि कहाँसे होगी ? प्रश्न- लोकाकाश जितने असंख्य प्रदेश वाला एकद्रव्य होनेपर भी परमाणके द्वारा उसका एकप्रदेश उलंधित होनेपर पर्यायसमयकी सिद्धि हो जायगी ? उत्तर-ऐसा नहीं है । एकप्रदेश की वृत्तिको सम्पूर्ण द्रव्यकी वृत्ति मानने में विरोध होनेसे । सम्पूर्ण काल पदार्थका जो सूक्ष्म वृत्यंश है वह समय है, परन्तु उसके एकदेशका वृत्यंश समय नहीं । दूसरी बात यह है कि तिर्यक्प्रचयको ऊर्ध्वप्रचयत्वका प्रसंग पाता है । स्पष्टीकरण-पहिले कालद्रव्य एकप्रदेशसे वर्ते, फिर दूसरे प्रदेशसे वर्ते और फिर अन्यप्रदेशसे वर्ते ऐसा प्रसंग पानेसे तिर्यक्प्रचय ऊर्ध्वप्रचय बनकर द्रव्यको प्रदेशमात्र स्थापित करता है । अर्थात् तिर्यप्रचयका ही ऊर्ध्वप्रचय बन बैठने
AN