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प्रवचनगार...सनदशाहो टीका
२७१ प्रय तिर्य गर्ध्वप्रचयावावेदयति
एक्को व दुगे बहुगा संखातीदा तदो अशांता य । दब्वाणं च पदेमा संति हि समय त्ति कालस्म ॥१४१॥
एक दो बहु असंखे, तथा अनन्ते प्रदेशद्रयोंके ।
काल है इकप्रदेशी, समयप्रचय मात्र इसके ॥१४५।। Kएको वा द्वौ बहवः संख्यातीलाम्तनो ऽनन्तान । व्याणां च प्रदं शान्ति हि समया इति कालम्य । ४ १३ RAI प्रदेशप्रच्यो हि तिर्यप्रनयः समयविमित्रवृत्तित्रच मस्त प्रचयः । तत्राकास्यावस्थि
सानन्तप्रदेशत्वाद्धर्माधर्मयोरवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वातील त्यानवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वात्पुद्गलस्य PAK नामसंक–एक्क व दुग बहुग संखातीद तदो अणत य दव्य व पदस हि समय ति काल । धातुसंज्ञ-- अस सत्तायां । प्रातिपदिक.....एक बानि बहु संन्यातीन लतः अनन्त च द्रव्य न प्रदेश हि समय इति
तथ्यप्रकाश---(१) एक परमाणु जितनी जगहमें स्थित हो उसे प्राकाशका एक प्रदेश कहते हैं। (२) माकाशके एक प्रदेशसे अधिक में परमाणु अवस्थित नहीं हो सकता, किन्तु पाकाशके उस प्रदेशमें अनन्तपरमाणु व अन्य अनेक द्रव्य रह सकते हैं, क्योंकि आकाशप्रदेश में सबको अवकाश देनेका सामर्थ्य है । (३) श्राकाश द्रव्य यद्यपि प्रखण्ड एकद्रव्य है, तथापि प्रकाशका प्रसीम विस्तार होनेसे उसमें अंशकल्पना हो जाती है । (४) अाकाशके अंश हैं ही, तभी दो अंगुलियाँ भिन्न स्थानों में पाई जाती है, दृश्यमान सभी पदार्थ भिन्न-भिन्न स्थानों में पाये जा रहे हैं।
सिद्धान्त -- (१) आकाश एक अखण्ड द्रव्य है । (२) विस्तृत अाकाशमें अंशकल्पना से प्रदेशका परिचय होता है।
ष्टि-१- अखण्ड परमशनिश्चयनय (४४) ३ २- भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्ध द्रव्या. अधिकप्रतिपादक व्यवहार (८२) ।
प्रयोग-प्राकाशको भौति अपनेको अमूर्त प्रखण्ड, किन्तु ज्ञानाधिक अनुभवनेका पौरुष करना ॥१४॥
। अब तिर्यकप्रचय तथा ऊर्ध्वप्रचयका परिचय कराते हैं--- [द्रक्ष्याणां च] द्रव्योंके एक एक, [ौ] दो, [बहवः] बहुत, [संख्यातीताः] असंख्य, [वा] अथवा [ततः अनन्ताः च] अनन्त [प्रदेशाः] प्रदेश [सन्ति] है। [हि कालस्य] किन्तु बालके [समयाः इति समय ही हैं, अनेक प्रदेश नहीं ।