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सहजानन्दशास्त्रमालायां अथामूर्तानां शेषद्रश्यारणां गुरगान गृणाति
थागासरस्वगाहो धम्मद्दव्वस्स गमणहेदुत्तं । धम्मेदरदब्वस्त दु गुणो पुणो ठाणकारणदा ॥१३३॥ कालस्स बट्टणा से गुणोवोगो त्ति अप्पणो भणिदो। णेया संखेवादो गुणा हि मुत्तिप्पहीणाणं ॥१३४॥ जुगलं। नभका गुरग अवगाहन, धर्मद्रव्यका गमनहेतुपना । अधर्मद्रव्यका थानक-हेतुपना गुण कहे इनके ॥१३३॥ कालका वर्तना गुण, उपयोग गुरण कहा है आत्माका ।
जानो संक्षेप तथा, गुण उक्त अमूर्त द्रव्योंके ।।१३४॥ आकाशस्यानगाही धर्मद्रव्यस्य गमनहेतुत्वम् । धर्मेंतरद्रव्यस्य तु गुणः पुनः स्थानकारग्यता ।। १३३ ।। कालस्य वर्तना स्यात् गुण उपयोग इति आत्मनो भणितः । ज्ञेयाः संक्षेपाद्गुणा हि मूर्तिपहीणानाम् ।।१३४॥
....... ... ... युगलम् ।। अशुद्धता है । २२-जैसे रागादि स्नेहरहित चैतन्यस्वरूपमात्र शुद्धात्मत्वके ध्यानसे ज्ञानादिचतुष्टयकी शुद्धता होती है, इसी प्रकार स्निग्वगुणके अभावमें बन्धनके न होनेपर परमारगपुद्गलावस्था स्पर्शादिचतुष्टयको शुद्धता होती है । २३-जैसे जीव को नर नारक आदि पर्याय विभाव पर्यायें हैं, इसी प्रकार शब्द पुद्गलद्रव्योंको विभावपर्याय है । २४- शब्द भाषात्मक व प्रभा षात्मक तथा उनके अनेक भेदोंसे नाना प्रकारके होते हैं ।
सिद्धान्त ---(१) भाषावर्गणात्मबद्ध अनेक पुद्गलोंकी पीय होनेसे शब्द समानजातीय विभाव द्रव्यव्यञ्जन पर्याय है।
दृष्टि-१-- समान जातीयविभावद्रव्यध्यानपर्याय (२१५) ।
प्रयोग--स्थिर शान्तिमय उपयोग रखनेके लिये दृश्य अदृश्य समस्त पुद्गलों व पु । गलपर्यायोंसे उपयोग हटाकर ध्र व चिद्ब्रह्ममें उपयोग लगाना ॥ ५३२ ।।
अब शेष अमूर्त द्रव्योंके गुणोंको कहते हैं-[प्राकाशस्याधगाहः] आकाशका अव.. गाह, [धर्मद्रव्यस्य गमनहेतुत्वं धर्मद्रध्यका गगनहेतुत्व [धर्मेतरद्रव्यस्य] अधर्मद्रव्यका [स्था. नकारणता] स्थितिहेतुत्व [कालस्य ] कालका [वर्तना स्यात्] वर्तना [गुणः] गुण है । [तु. पुनः] और [आत्मनः गुरणः] प्रात्माका गुण [उपयोगः भरिणतः] उपयोग कहा है। [इति मूर्तिप्रहोणानां गुणाः हि] इस प्रकार अमूर्त द्रव्योंके गुण [संक्षेपात्] संक्षेपसे [ज्ञेयाः] जानना चाहिये।