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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका
प्रय कालपदार्थस्य द्रव्यपर्यायौ प्रज्ञपयति
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वविददो तं देमं तस्सम समय तदो परो पुच्ची । जो त्यो सो कालो समय उप्पण्णापद्ध सी ॥१३६॥
नमका प्रदेश लंघने के समय सम कहा समय पर्याय ।
काल द्रव्य कालिक, समय समुत्पप्रध्वंसी ॥ १३६ ॥ व्यतिततस्तं देशं तत्समः समयस्वतः परः पूर्वी । योऽर्थः स कालः समय उत्पन्नप्रध्वंसी ॥ १३६ ॥ यो हि येन प्रदेशमात्रेण कालपदार्थेनाकाशस्य प्रदेशोऽभिव्याप्तस्तं प्रदेश मन्दगत्यातिकमतः परमाणोस्तत्प्रदेशमात्रातिक्रमणपरिमाणेन तेन समो यः कालपदार्थ सूक्ष्मवृत्तिरूपसमयः
नामसंज्ञविदन्तत देस तस्सम समय तदों पर पुत्र त अत्थ त काल सम उप्पगपद्धसि । धातुसंज्ञ - उब पज्ज गलौ, १ स नाशने। प्रातिपदिक व्यतिपतत् तत् देवा तत्सम समय सदों पर पूर्व ': प्रयोग - समस्त प्रश्रयभूत कारणोंसे उपयोग हटाकर साधारण निमित्तभूत कालद्रव्य वृतिका निमित्त पाकर जो स्वयंमें सहज परिणमन बने सो होने ऐसे खुद के प्रत्यन्त उदात्त रहनेका पौरुष होने देना ।। १३८५||
काल पदार्थ द्रव्य और पर्यायका ज्ञान कराते हैं - [तं देशं व्यतिपततः ] परमारके एक श्राकाशप्रदेशको उलंघन करते हुए [ तत्सम: ] कालके बराबर जो काल है वह [समयः] 'समय' है; [ततः पूर्वः परः ] उस समय से पूर्वं तथा पश्चात् रहने वाला [यः अर्थः ] जो पदार्थ है [सः कालः ] वह कालद्रव्य है [ समय: उत्पन्नप्रध्वंशी ] 'समय' उत्पन्न और प्रध्वंस वाला है ।
तात्पर्य - एक समय उतना समय है जितना समय परमाणुको एक आकाशप्रदेश उल्लंघन करनेमें लगता है, कालद्रव्य नित्य है समय अनित्य है ।
टीकार्थ-प्रदेशमात्र जिस काल पदार्थके द्वारा आकाशका जो प्रदेश व्याप्त हो उस प्रदेशको मन्दगति से उल्लंघन करते हुए परमाणुके उस प्रदेशमात्र प्रतिक्रमण के परिमाणके बरावर जो काल पदार्थकी सूक्ष्मवृत्तिरूप 'समय' है, वह उस काल पदार्थको पर्याय है । और ऐसी उस पर्यायसे पूर्वको तथा बादकी वृत्तिरूपसे वर्तित होनेसे जिसका नित्यत्व प्रगट होता है, ऐसा पदार्थ द्रव्य है । इस प्रकार द्रव्यसमय अर्थात् कालद्रव्य अनुत्पन्न अविनष्ट है और पर्यायसमय उत्पत्ति-विनाश वाली है । यह समय निरंश है, क्योंकि यदि ऐसा न हो तो माकाशके प्रदेशका निरंशत्व न बनेगा । और एक समय में परमाणुका लोकपर्यन्त गमन होने पर भी समय के अंश नहीं होते; क्योंकि परमाणुके विशेष प्रकारका अवगाह परिणाम होने की