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सहजानन्दगास्त्रमालामा
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संवर्तविस्ताराभ्यामनवस्थितप्रमागास्यापि शुष्कार्द्रत्वाभ्यां चर्मण इव जीवस्य स्वांशाल्पबहत्या भावादसंख्येयप्रदेशत्वमेव । प्रमूर्तसंदर्तविस्तारसिद्धिश्च स्थूलकृशशि कुमारशरीरव्यापित्वादस्ति स्वसंवेदनसाध्यन्त्र । पुद्गलस्य तु द्रव्यगोकप्रदेशभात्रत्वादप्रदेशत्वे यथादिते सत्यपि विप्रदेशाधु
द्भवहेतुभूततथाविधस्निग्धरूक्षगुगपरिणामशक्तिस्वभावोत्प्रदेशाद्भवत्वमस्ति । ततः पर्यायगाने • कप्रदेशत्वस्यापि संभवात् द्वयादिसंख्यया संख्ययानन्तप्रदेशत्वमपि म्पाय्यं पुद्गलस्य ।।१३७।। शेषाणाम् षष्ठी बहु० । आईसो अप्रवेश: परमाण परमाणु:-प्रथमा एक । तेण तेन-तृतीया एक० । पद.. सुब्भवो प्रदेशोद्भवः-प्रथमा एक । णि दो णित:-प्रथमा एकवचन कृदन्त किया। निरूक्ति-शेषयने । शेषः, अण्यते इति अणुः । समास-नमस: प्रदेशा. इति नभत्रिदेशाः, (प्रदेशानां उदभवः इति प्रदेशोती दभवः ११३७।।
टीकार्थ-ग्रन्थकार स्वयं ही १४० वी गाथा द्वारा कहेंगे कि ग्राकाशके प्रदेशका लक्षण एक परमारण से व्याप्त होना है, और इस माथामें 'जिस प्रकार आकाशके प्रदेश है। उसी प्रकार शेष द्रव्योंकि प्रदेश है' इस प्रकार प्रदेश के लक्षणकी एक प्रकारता कही जाती है । इसलिये, जैसे एक परमाणुसे व्याप्य हो ऐसे अंशके द्वारा पिने जाने पर प्रकाशके अनन्त अंश होने से प्राकाश अनन्तप्रदेशी है, उसी प्रकार एकारगुव्याप्य अंशके द्वारा गिने जानेपर धर्म प्रधर्म और एक जीवके असंख्यात अंश होनेसे वे प्रत्येक असंख्यातप्रदेशी है और जैसे अव स्थित प्रमाण वाले धर्म तथा अधर्म असंख्यातप्रदेशी हैं, उसी प्रकार संकोच-विस्तारके कारण अनवस्थित प्रमाण वाले जीवके-सूखे गीले चमड़े की तरह निज अंशोंका अल्पबहत्व नहीं होनेसे असंख्यातप्रदेशितव ही है। अमूर्तके संकोच-विस्तार की सिद्धि तो चंकि जीन स्थूल तथा कृशः शरीर तथा बालक और कुमारके शरीर में व्याप्त होता है, अतः अपने अनुभवसे ही साध्या है। परंतु पुद्गल द्रव्यत: एक प्रदेशमात्र होने से यथोक्त (पूर्व कथित) प्रकारसे अप्रदेशी हैं, तथापि दो प्रदेशादिके उद्भवके हेतुभूत उस प्रकारके स्निग्ध-रुक्ष गुणरूप परिणमने की शक्तिरूप स्वभावके कारण उसके प्रदेशोंका उद्भव है। इस कारण पर्यायतः अनेकप्रदेशित्व भी संभव होनेसे पुद्गलको द्विप्रदेशित्वसे लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशित्व भी न्याय युक्त है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें यह बताया गया था कि एक प्रदेशी द वह प्रदेशी द्रव्य कहाँ रहते हैं । अब इस गाथामें प्रदेशवानपना व अप्रदेशवानपनाकी संभावनाका । प्रकार सूचित किया गया है।
तथ्यप्रकाश--१-प्रदेशका माप मुख्यतया अाकाशके अविभागी अंशसे किया जाता है । २- एक परमाणु आकाशकी जितनी जगहको रोकता है, व्यापता है उतने क्षेत्रांशको एक
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