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सहजानन्य शास्त्रमालाया
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प्रदेशप्रस्ताररूपत्वादधर्म स्य, सर्वधावनन्तप्रदेशप्रस्ताररूपत्वादाकास्य च प्रदेशवत्वम् । काला । गोस्तु द्रषण प्रदेशमात्रत्वात्पर्यायेण तु परस्परसंपकासंभवादप्रदेशत्वमेवास्ति । ततः कालद्रव्यमप्रदेश शेषद्रव्यारिण प्रदेशवन्ति ॥ १३५ ।। आगासं आकाशं-प्र० एक० । सपदेसेहि स्वप्रदेश:--तृतीया बहु । असंखादा असभ्याता: प्रथमा बहु । पत्थि संति-वर्तमान अन्य पुरुष बहुवचन क्रिया । पदेसा प्रदेशा...प्रथमा बहु । कालम्स कालस्य-षष्ठी एकः । निक्ति-चीयते हति कायः । समास....धर्मश्च अधश्च धमाधमों, स्वस्थ प्रदेशा: स्वदेशात: स्वप्रदेशै: 11 १३५ ।।
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लोकव्याको असंख्य प्रदेशोंके विस्ताररूप होनेसे धर्मद्रव्य प्रदेशवान हैं; सकल लोकन्यापी असंख्य प्रदेशों के विस्ताररूप होनेसे अधर्मद्रव्य प्रदेशवान है; और सर्वव्यापो अनन्त प्रदेशोंके विस्तार रूप होनेसे आकाशद्रव्य प्रदेशवान है। काला तो द्रव्यतः प्रदेशमात्र होने से और पर्यायत्तः परस्पर संपर्क न होनेसे अप्रदेशी ही है । इस कारण कालद्रव्य अप्रदेशी है और शेष द्रव्य प्रदेश वान हैं।
प्रसंगविकरण --अनन्तरपूर्व गाथाद्वयमें अमूर्तद्रव्योंके असाधारण गुण बताये गये थे। अब इस गाथामें द्रव्योंका एकप्रदेशोपने ब प्रदशीपनेकी विशेषता बताई गई है।
तथ्यप्रकाश-१-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश ये अस्तिकाय हैं, क्योंकि ये अनेक प्रदेश वाले हैं । २- सभी प्रत्येक कालद्रव्य अस्तिकाय नहीं है, क्योंकि काल द्रव्य (कालागु) एकप्रदेशी मात्र है। ३-जीवके प्रदेशों में संकोच विस्तार होने पर भी जीव लोकाकाशप्रदेश प्रमाण असंख्याल प्रदेश वाला सतत है। ४- पुद्गल (परमाणु ) स्वद्रव्यत: मात्र एकप्रदेशी होनेसे अप्रदेशी है (अस्तिकाय नहीं), फिर भी दो प्रादि अनन्त परमगुवोंके स्कन्धपर्यायकी दृष्टिसे दो
आदि अनन्त अरगु वाला तक होनेसे बहुप्रदेशी होने से प्रस्तिकाय है । ५-धर्मद्रव्य समस्त लोक में व्यापक प्रसंख्यातप्रदेशी होने से अस्तिकाम है । ६. अधर्म द्रव्य समस्त लोकमें व्यापक असंख्यातप्रदेशी होनेसे अस्तिकाय है । ७- असीम व्यापक अनन्तप्रदेशी होनेसे आकाश अस्ति.. काय है । -- कालद्रव्य परस्पर कभी संयुक्त हो ही नहीं सकता सो वह उपचारसे भी अस्तिकाय नहीं है । E-जीव, धर्म, अधर्म व आकाशद्रव्य वस्तुतया अस्तिकाय हैं । १०--पुद्गल द्रव्य व्यवहार से अस्तिकाय है । ११-कालद्रव्य किसी भी प्रकारसे, उपचारसे भी अस्तिकाय नहीं है।
सिद्धान्त---१-पुद्गलपरमारगु योग्यताके कारण अस्तिकाय है । २-पुद्गलस्कन्ध उपचारसे द्रव्य व अस्तिकाय है ।
दृष्टि------ स्वजात्यसद्भूत व्यवहार (६७) । २-- स्वजातिपर्याये स्वजातिद्रव्योपचारक असद्भूत व्यवहार (१२०) ।
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