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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका
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नामपूज्योतिरुदरमरुतामारम्भदर्शनात् । न च क्वचित्वस्यचित् गुणस्थ व्यक्ताव्यक्तत्वं कादाचित्कपरिणामवैचित्र्यप्रत्ययं नित्यद्रव्यस्वभावप्रतिघाताय । ततोऽस्तु शब्द: पुद्गलपर्याय एवेति ॥१३२॥
, स्पुरते स्पर्शन वा स्पर्शः पुचवतीति पृथ्वी, पुद्गलस्स अयं पौद्गल । समास-वर्णश्च सश्च व स्पर्शश्वेत वर्णरसगन्धस्पर्शाः ।। १३२ ॥
गृह्यमाण हो चाहे गृह्यमाण होते हैं एक द्रव्यात्मक परमार से लेकर बड़ेसे बड़े पुदगलस्कंध तकमें । ६-स्पर्शादिक गुण पुद्गलातिरिक्त अन्य द्रव्योंमें नहीं होते, ये गुणरूप लक्षप लक्ष्यरूप पुद्गलका परिचय कराते हैं । ७- शब्द इन्द्रियग्राहय तो है, किन्तु गुण नहीं है, शब्द त्मक पुद्गपर्याय है । ८-कोई शब्दको गुण माननेकी जबर्दस्ती भी करे तो भी
शब्द प्रद्रव्यका गुण तो सिद्ध हो हो नहीं सकता, क्योंकि शब्दको श्रमूर्त द्रव्यका गुण माना जाय तो वह अमूर्त द्रव्य कइन्द्रियका विषय हो बैठेगा, किन्तु ऐसा है ही नहीं । --शब्द तो पर्याय है, अन व है अनेकद्रव्यात्मक द्रव्यव्यञ्जनपर्याय है, अतः शब्द मूर्तद्रव्यका भी गुरण नहीं है। १० - शब्द भाषावगंगा नामक पौद्गलिक स्कंदकी पर्याय है । २१ शब्दोंके उपादान में जो नित्यपना है सो वह नित्यपना पुद्गलद्रव्यका व स्पर्शादि गुणोंका है । १२- शब्द पुद्गलकी होनेपर भी इन्द्रियका ही विषयभूत हैं, क्योंकि अन्य इन्द्रियका विषय अन्य इन्द्रिय द्वारा गम्य नहीं होता। १३- काला पीला आदि रूप पुद्गल के पर्याय होनेपर भी इन्द्रिय काही विषयभूत | १४- सुगंध दुर्गन्ध पुद्गलकी पर्याय होनेपर भी प्राणेन्द्रियका विषयभूत हैं । १५- खट्टा मीठा प्रादि रस पुदगलका पर्याय होनेपर भी रसनाइन्द्रियका विषयभूत है । १६- शीत, उष्ण आदि पुद्गलका पर्याय होनेपर भी स्पर्शनइन्द्रियका विषयभूत है । १०- जलमें गन्ध, प्रग्निमें गंव रस, बायुमें गंध रस वर्ण व्यक्त न होनेपर उन सबमें स्पर्श
गंध व चारों ही सदा है, क्योंकि अव्यक्त भाव पर्यायान्तरमें व्यक्त हो जाते हैं । १८पर्यायें व्यक्त व्यक्त हों इससे पुद्गलद्रव्यको नित्यतावर कोई चोट नहीं प्राती । १९ - जैसे ज्ञानादि चतुष्टय यथासंभव विकासयुक्त सर्व जीवों में साधारण हैं, इसी प्रकार स्पर्शादि चतुष्टय यथासंभव पर्यायरूपसे सर्व पुद्गलोंमें साधारण हैं अर्थात् सब पुद्गलोंमें होते ही हैं । २०जैसे मुक्त जीव में अनन्त ज्ञानादिचतुष्टय प्रतीन्द्रिय ज्ञानगम्य श्रनुमानगम्य व आगमगभ्य हैं, इसी प्रकार शुद्ध परमाणु द्रव्यमें स्पर्शादिचतुष्टय अतीन्द्रियज्ञानगम्य, अनुमानगम्य व आगमगम्य हैं । २१ - जैसे संसारी जीव में रागादिस्नेहनिमित्तक कर्मबन्धन के वशसे अनंतज्ञानादिचतुकी अशुद्धता है, इसी प्रकार स्निग्धरूक्षगुणनिमित्त स्कंध अवस्था में स्पर्शादिचतुष्टयकी