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सहजानन्दशास्त्रमालायां * अथ मू मूर्तगुणानी लक्षणसंबन्धमाख्याति-- ५. ? चिन्त्य प्रज्ञा ता इंदियगेज्मा पोग्गलदव्वापमा प्रयोगविधा।
मुद्धा मुनि १० दवाणममत्ता गुणा यमुत्ता मुगोदना ॥१३१॥ सुबिध सारजी महारामत ग्राह्य इन्द्रियसे, वे हैं पुद्गल पदार्थ नानाविध ।
द्रव्य अमूतोंके गुण, अमूर्त इन्द्रियाग्राह्य कहे ॥१३१॥ मा इन्द्रियग्राह्याः गुद्गलद्रव्यात्मका अनेकविधाः । द्रक्ष्याणाममूतानां गुणा अमृता ज्ञातव्याः ।। १३१ ।।
भूर्तानां मुणानामिन्द्रियग्राह्यत्वं लक्षणम् । अमूर्तानां तदेव विपर्यस्तम् । ते च मूर्ताः पुद्गलद्रव्यस्य, तस्यवेकस्य मूर्तत्वात् । प्रमूर्ता: शेषद्रध्यामा, पुद्गलादन्येषां सर्वेषामप्यमूर्तस्वात् ॥१३१॥
नामसंज---मुत्त इंदियगेज्म पोग्गलदव्वलग अोगविध दव्य अमुल गुण अमुत्त मुरगदव्व । धातुसंज्ञ--- मुण ज्ञाने। प्रातिपदिक----भूत इन्द्रियग्राह्य पुद्गलद्रव्यात्मक अनेकविध द्रव्य अमूर्त गुण अमूर्त ज्ञातव्य । मूलधातु----ज्ञा अवबोधने। उभयपदविवरण---मृत्ता मुताः इदियगेज्मा इन्द्रियग्राह्याः पोग्गलदथ्वप्पामा पुद्गलद्रव्यात्मकाः अरोगविधा अनेकविधाः गुणा गुणाः अभुत्ता अमृता:- प्रथमा बहुवचन । दवाणं द्रव्यागाँ अभुत्ताणं अमुर्ताना-ठी बहुवचन । भुपेन्द्रा ज्ञातव्या:-प्रथमा बहुवचन कृदन्त त्रिया। निरुक्ति--- (इन्दनं इन्द्रः इन्द्रस्येदं लिंग इन्द्रिय) समास-इन्द्रियेण ग्राह्या: इन्द्रियग्राह्याः) पुद्गलं द्रव्यं एव आत्मा येषां ते पुद्गलद्रव्यात्मकाः ।। १३१ ।। मूर्त हैं । (२) जिनकी पर्याय कभी भी इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य न हो सके वे गुण अमूर्त हैं । (३) मूर्त गुण पुद्गलद्रव्यके हैं । (४) अमूर्त गुण पुद्गलको छोड़कर शेष पांच प्रकारके द्रव्योंके हैं।
सिद्धान्त-१- पुद्गलद्रव्यके मूर्त गुण हैं । २- जीव, धर्म, अधर्म, आकाश व कालद्रव्यके अमूर्त गुण हैं।
दृष्टि-१, २- भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकन य (५०)।
प्रयोग-शाश्वत शान्तिके लिये इन्द्रियग्राह्य अर्थों का उपयोग हटाकर अमूर्त शुद्ध चिद्ब्रह्ममें उपयुक्त होना ।। १३१ ॥
__ अब मूर्त पुद्गल द्रव्यके गुणोंको कहते हैं:-[सूक्ष्मात्] सूक्ष्मसे लेकर पृथिवीपर्यंतस्य] पृथ्वी पर्यन्तके [पुद्गलस्य] सई. पुद्गलके [वर्णरसगंधस्पर्शाः] वर्ण, रस, गंब और स्पर्श गुण [विद्यन्ते] होते हैं; [च चित्रः शब्दः] और जो विविध प्रकारका शब्द है [सः] वह [पौद्गलः] पौद्गलिक पर्याय है ।
तात्पर्य-पुद्गलके वर्ण गन्ध रस स्पर्श तो गुण हैं और शब्द पुद्गलकी द्रन्यव्यंजन पर्याय है।
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