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सहजानन्दशास्त्रमालायां अथ द्रव्य विशेषप्रज्ञापनं तत्र द्रव्यस्थ जीवाजीवत्वविशेष निश्चिनोति---
दव्वं जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवोगमयो । पोग्गलदव्बप्पमुहं अचेदणं हवदि य अजीवं ॥१२७।। द्रव्य सु जीब अजीव हि, जीव सदा चेतनोपयोगमयो :
पुद्गलद्रव्यादि प्र-तन द्रव्य अजीव कहलाते ॥१२७।। द्रव्यं जावोऽजीबो जीव: पुनश्चेतनोपयोगमय: । पुद्गलद्रव्यप्रमुखोऽचेतनो भवति चाजीवः ॥ १२७ ।।
इह हि द्रव्यमेकत्व निबन्धनभूतं द्रव्यत्वसामान्य मनुज्झदेव तदधिरूढविशेष लक्षणसद्धाः वादन्योन्यव्यवच्छेदेन जीवा जीवत्वविशेषमुप ढोकत । तत्र जीवस्यात्मद्रव्यमेवैका व्यक्तिः ।। अजीवस्य पुनः पुद्गलद्रव्यं धर्मद्रव्यमधर्मद्रव्यं कालद्रव्यमाकाशद्रव्यं चेति पश्च व्यक्तयः । विशेष लक्षणं जीवस्य चेतनोपयोगमयत्वं, अजीवस्य पुनरचेतनत्वम् । तत्र यत्र स्वधर्मव्यापकत्वात्स्वः ।।
नामसंज्ञ.....दध्व जीब अजीव जीव पुण चेदणोधओगम पोग्गलदन्नप्पमुह अचेदण य अजीव ।। धातुसंज्ञ व सत्तायो । प्रातिपदिक-द्रव्य जीव अजीव जीव पुनर् चेतनोपयोगमय पुद्गलद्रव्यप्रमुख अचेतन च अजीव । मूलधातु---सु सत्तायां । उभयपदविबरण---दव्यं द्रव्यं जीवं जीवअजीवं अजीवः
दृष्टि------ अशुद्ध निश्चयनय (४७) । २- शुद्ध निश्चयनय (४६) । प्रयोग-सर्वत्र अपना एकत्व निरखकर सहज एकत्वमें रमनेका पौरुष होने देना ।।१२६॥
अब द्रव्यविशेषका प्रज्ञापन होता है-उसमें पहिले द्रव्य के जीवाजीवस्वरूप विशेष को निश्चित करते हैं-----[द्रव्यं] द्रव्य जीवः अजीवः] जीव और अजीव है । [पुनः] उनमें [चेतनोपयोगमयः] चेतनास्वरूप ज्ञान दर्शन उपयोग वाला तो [जीवः] जीव है, [च] और, [पुद्गलद्रव्यप्रमुखः प्रचेतनः पुद्गलद्रव्यादिक चेतनारहित द्रव्य [अजीवः भवति] अजीब है।
तात्पर्य-द्रव्यके दो प्रकार हैं----जीव और अजीब, उनमें चेतन तो जीव है और अचेतन पुद्गल धर्म अधर्म अाकाश व काल अजीव है ।
टीकार्थ-----यहाँ (इस विश्वमें) द्रव्य, एकत्वके कारणभूत द्रव्यत्वसामान्य को न छोड़ता। हुआ ही उसमें रहने वाले विशेष लक्षणोंके सभावके कारण एक-दूसरेसे पृथक् किये जाने से जीवत्वरूप और अजीवत्वरूप भेदको प्राप्त होता है । उसमें, जीवका आत्मद्रव्य हो एक प्रकार है; और अजीवके पुद्गलद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, कालद्रव्य तथा प्राकाशद्रव्य-ये पाँच प्रकार हैं । जीवका विशेष लक्षण चेतनोपयोगमयत्व है; और अजीवका अचेतनत्व है । उनमें से जिसमें स्वधर्मों में व्याप्त होनेसे स्वरूपत्वसे प्रकाशित होती हुई, अविनाशिनी, भगवती, संवेदनरूप चेतनाक द्वारा, तथा चेतनापरिणामलक्षण, द्रव्यपरिणतिरूप उपयोगके द्वारा निष्पन्नत्व अव.
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