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महनामशरमारा तामुपागतेन स्वभावेन परिणाम मा स्वमेवायामा मुख्तामापयते । शरीरं विजेतात्यादेव पुरवत्वारिणने निश्चम रसमलामा म जान मुरत भुपोकत ति ।। || यह हाहा: मनन- गिगा नाम
:अधमा :: | १४| नि- TRA चा गायनर .. " S-आम | निस्ति
। स माना ग्यमान ॥६५॥ नहीं है, किन्तु उग प्रकारका विकला। | विषय में इ! , it होस मात्रामा इन्द्रियों firitv यू.बड़ी है। याने कूदा पालो निशार होत मलिन पुस्तिक आनुव करने : १४ मनिनिका अनुसार यान गयका नात्मशक्तिसार रक जाता है । {1. प्रामकिपर र जानकर भी न बुदनी दर्शनथीमत्र स्वभाव जीव परिणाम यह। उम परिणामममे ओर गवः"प मान्य शाला यार रहा है। (५) पुरसहित आवस्या में भी जोधा शुधिराभिस पारा को चिव शानदानवीर्यात्मक स्वभाव परिणमना है । (0) अवेतन होरों सर का विश्व गतः कारण ही हो नहीं सकना । (5) माय गरियन व शरीर भित्र भित्र मात. अतः रोग सुखकारणताही । 16 मनः जीयोः प्रागीर रही है, इस बार लोग कोसे हो राबता ? यह संदेह नही करना, योनि र बकायम नर, गलब'। नित्र. यतः शाधन मार रहाम! {s) दिसम्बका गी निचरा या असमभाव है 1 १११) मृत जीवोंक प्रामादा कारण yिei fम यात्मप्रकाशन (2) इन्द्रिसमजामा परिणम काल अस्माको शानदार स्वभावः। म ज f कर विकार की योग्यता हो जाना ही अद्ध स्वभान होना कहना।
सिद्धान्त-१) अामा प्रानन्दन यानि .1!! माना । दृष्टि--- उपादानटि ४६५] ।
प्रयोग ... मुख प्रानन्यका जिय महलानन्याम पयस्य प्रत्य मान होने का पौमा झरना । ६५ ।।
प्रय इस तथ्यको दृश करते हैं... एकान्तेन ति] कालने इत्याद नियम स्वर्ग वा स्वर्ग भी देहा। गोरदेहिनः ] शरीरी प्रात्माको [सुखं न करोति सरत्र नहीं वसा [तु विषयवशेन] परन्तु विषयों के वशने [साय वा दुःश्यं] मुख अथवा दुःखहण [स्वयं ग्रात्मा भवति । स्वयं प्रात्मा होता है।
तात्पर्य --- स्वगंमें भी वो गीत्र हो मुख दरवरूप होता है, उनका जोर नहीं।
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